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जैन-रनसार
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अन्नप्रायवनप्रणमननयमाप्रमाणपत्र प्रतापग्रमग्रमा मनगरनारायण
जीरावल्ली पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा' इस मन्त्र से सात बार जल मन्त्रित कर मण्डलजी के चारों तरफ धार देवे । ऊपर भी थोड़ा छींटा देकर पवित्र करे, धूप खेवे । पीछे नौ तार की मौली के साढ़े तीन आंटे पूर्वोक्त मन्त्र से देवे और मैनफल मरोडफली चारों कोनों में बांधे। पीछे केशर की कटोरी हाथ में लेकर 'ॐ आं ह्रीं श्रीं अर्हते नमः' इस मन्त्र से मन्त्रित कर मण्डल के ऊपर केशर का छींटा देवे। पीछे केशर, चन्दन, कुंकुम (रोली) लेकर मण्डलजी के चारों ओर तीन बार लगावे । पीछे वासक्षेप, पुष्प हाथ में लेकर 'ॐ भूरसीभूतधात्री विश्वधारायै नमः' इस मन्त्र से सात बार मन्त्रित कर मण्डल के बीच में पूजा करे । फिर आचार्य, गुरु हाथ में वासक्षेप लेकर 'ॐ ह्रीं श्रीं अर्हत् पीठकाय नमः' इस मन्त्र से सात बार। मन्त्रित कर मण्डल पर वासक्षेप करे ।
इसके बाद स्वात्रियें हाथ में पुष्प चावल लेकर तीन बार मण्डल को बधावे । नीचे चावलों का स्वस्तिक ( साथिया) करके रुपया नारियल स्थापना में धरे । एक स्नात्रिया मन्दिर के अन्दर से प्रतिमाजी को लाकर त्रिगड़े के ऊपर मन्त्र पढ़ कर स्थापना करे । मण्डलजी के बीच में प्रतिमा जी रखने का यह मन्त्र पढ़े ॐ नमोऽर्हत् परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिनेदिक कुमारी परि पूजिताय चतुःषष्ठी सुरा सुरेन्द्र सेविताय देवाधि देवाय त्रैलोक्य महिताय अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । इस मन्त्र को पढ़ कर नौ प्रतिमा अथवा एक प्रतिमा स्थापित करे। इस तरह मण्डल पूजा करे ।।
प्रथम वलय पूजा प्रथम एक रकेबी में श्वेतगोला, श्वेतवस्त्र, श्वेत ध्वजा, आठ कर्केतक रत्न, चौतीस हीरे, हाथ में लेकर अरिहन्त पद की पूजा करे।
अरिहन्त पद पूजा अथाष्ट दल मध्याब्ज कर्णिकायां जिनेश्वरान् । आविर्भूतालसद्वोधानाव्रतः स्थापयाम्यहम् !!१॥ निश्शेष दोषंधन धूमकेतून्नपार संसार समुद्र
* मण्डलजी पर प्रतिमाजी को विराजमान करने की रीति कहीं कहीं है।
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लालपूटयूट्रल प्रणप्रणप्रत्रनगणनगलनग्राननगणत्रयनिग्रनल्यतया