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जैन-रत्नसार
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वी० ||३८|| साधु अनन्ता प्रतित्रकं केरे रे लाल, सीधा ध्यान लगाय रे भ० । मनमोहन गिरि सेवतां रे लाल, पातिक दूर पुलाय रे भ० वी० ॥३९॥
(दोहा) - कर जोड़ी नित प्रति नर्मू, सहू साधु मन भाय । सेश्रुंज महातम ग्रंथ से, भेद सुणो चितलाय ||४०|| भरतादिक सें आज लग, सोले उद्धार कहाय । ग्रन्थांतर में जेहना, भेद कह्या समझाय ॥ ४१ ॥ संप्रति काले ए रह्यो, षोड़समो उद्धार । करमचन्द डोसी तणो, जश रहो जग विस्तार ||४२|| देव भुवन जिम शोभता, नव बसी चैत्यना भाव । सुरपति नरपति सहु नमें, प्रगट्यां आतम दाव ||४३|| सहु बिम्बनी संख्या कहु, जेनव वसिमें होय । मूल नायक वसिनाम में, प्रगट कहु हुं
जोय ||४४ ||
( ढाल )
शत्रुंजय गिरि रे । ए चाल
प्रथम विमल वि
नमो रे नमो प्रणम् ए गिरि राय नेरे, धन्य दिवस थयो आज रे । सुमता ने सुपसाय थी रे, मनवंछित फल्या काज रे प्र० ||४५ || आयने रे, पूज्या जिन प्रतिबिम्ब रे | सभी चैत्यों में सोभता रे, छप्पन सै छप्पन बिम्ब रे प्र० ||४६|| नाभिराय सुत जाणिये रे, मूल नायक छवि शान्ति रे । मोती बसी में बिम्ब रह्या रे, पंचवीस सै बयालीस क्रांतिरे प्र० ॥४७॥ बाला वसि में सोमता रे, प्यार से षट् बिम्ब जाण रे । मूल नायक दो वसीतणारे, आदिनाथ गुण खाण रे प्र० ||४८ || अद्भुत बिम्ब मनोहरू रे, इग्यारे कर~ ऊंची जाण रे । विस्तार मान नब हाथ नो रे, मुझ बल्लभ जिम प्राण रे प्र० ||४९ || चौथी प्रेमा वसी हुं नमूं रे, आदिनाथ जगनाथ रे । पांच से अड़तीस जिहां रह्या रे, बिम्ब मिल्यां सहु साथ रेप्र० ॥ ५० ॥ अजितनाथ स्वामी तणी रे, पांचमी हेमावसी थाय रे 1 अड़सठ ऊपर तीन सै रे, बिम्ब नमूं गुण गाय रे प्र० ॥ ५१ ॥ ऊजम वसी छडी जाणिये रे, पद्म प्रभु जग भाग रे । ऋषभानन चन्द्रानने रे, वारिषेण वर्धमान रे प्र० || ५२|| बावन जिनाला शाश्वता रे, चौमुख नन्दीसर भाव
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