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जैन-रत्नसार
सिद्धगिरि स्तुति
विमलाचल मण्डण जिनवर आदि जिनन्द,
निरमम निरमोही केवल ज्ञान दिनन्द | जे पूर्व निवाणं बारघरी आनन्द,
सेना गिरिशिखरे समवसर्या सुखकन्द ॥१॥ इस प्रकार चैत्यवन्दन स्तवन स्तुति कहने के बाद श्री सिद्धगिरि जयति
१ श्री शत्रुञ्जाय नमः । २ श्री पुण्डरीकाय नमः | ३ श्री सिद्धक्षेत्राय नमः । ४ श्री विमलाचलाय नमः । ५ श्री सुरगिरये नमः । ६ श्री महागिरये नमः | ७ श्रीपुण्यराशये नमः । ८ श्रीपर्वताय नमः । ९ श्रीपर्वतेन्द्राय नमः । १० श्री महातीर्थाय नमः | ११ श्री शाश्वताय नमः | १२ श्री दृढ़शक्तये नमः । १३ श्री मुक्तिनिलयाय नमः | १४ श्री पुष्पदन्ताय नमः । १५ श्री महापद्माय नमः । १६ श्री पृथ्वीपीठाय नमः । १७ श्री सूरभद्र - गिरये नमः | १८ श्री कैलाशगिरये नमः । १९ श्री पातालमूलाय नमः । २० श्री अकर्मकर्त्रये नमः | २१ श्री सर्वकामपूर्णाय नमः ।
ये सिद्धगिरि की खमासमणपूर्वक २१ जयति देवे ।
श्री सिद्धाचल चैत्यवन्दन ( द्रुतविलम्बित छन्द) जय अनन्त गुणाकर शङ्कर ! जय महोदय हेतु निरन्तर ! | जय भयङ्कर दुःख निघर्षण ! जय गिरीश्वर पावन दर्शन ! ॥१॥ जय सुदुर्गति पाप निवारण ! जय महा भव सागर तारण ! | जय यशोधर मोह तमोहर ! जय महालय भूत महेश्वर ! ॥२॥ जय महाघृति तेज विराजित ! जय भवोदय दुर्गुण वर्जित ! 1
जय विशाल विभुत्व समाश्रित! जय गिरीश्वर योगि सुसेवित ! ॥३॥ जय निरंजन पुण्य पढ़ाश्रय ! जय सुज्जुजुल सिद्धिरमालय ! | जय निरामय निर्भय निर्मल ! जय गिरीश्वर सिद्ध महाबल ! ||
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