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विधि - विभाग
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काउसग्ग करे, अगर समय थोड़ा हो तो एक लोगस्स का काउसग्ग करे पारकर ‘णमो अरिहंताणं ० ' पूर्वक श्री तीर्थाधिराज की स्तुति कहे ।
इसी तरह बीस, तीस, चालीस तथा पचास इन चारों पूजा के भेदों के बारे में भी समझ लेना। विशेषता इतनी ही है दूसरी पूजा में सब विधि बीस, बीस करनी। तीसरी पूजा में सब विधि तीस, तीस करे । इसी प्रकार चौथी पूजा में ४० और पांचवीं में सब विधि पचास, पचास करे | श्री ' सिद्धक्षेत्र पुण्डरीकाय मन:' इस पद की २० माला फेरे । पांचों पूजाओं में एक एक ध्वजा चढ़ानी चाहिये अगर ऐसा न हो सके तो कम से कम पांचों पूजाओं के निमित्त एक ध्वजा चढ़ावे । इस तपको कम से कम एक वर्ष, मध्यम सात वर्ष और उत्कृष्ट १५ वर्ष तक करे ।
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करे |
तप सम्पूर्ण हुए पीछे शत्रुञ्जयजी की यात्रा करे । ज्ञान पूजा यथाशक्ति साधर्मी वत्सल करे ।
श्री सिद्धाचल चैत्यवन्दन ( हरि गीत छन्द)
युग आदि प्रभु आदिने जिसको सनाथ बना दिया,
पूरब नवाणु वार निजपद शरण दे पावन किया । जिसके अणु अणु में भरा है दिव्य तेज अनुत्तरं,
तेजोमयं तमहं सदा प्रणमामि सिद्धगिरीश्वरम् ॥१॥ योगी तथा भोगी जहां निज साध्य साधनता वरें,
हैं अन्तराय अनंत उनका अन्त भी जल्दी करें । संसार में सर्वोच्चपद पावें अचल सुख निर्भरं,
तं साध्य-सिद्धिकरं सदा प्रणमामि सिद्धगिरीश्वरम् ॥२॥ जह पुण्यमृर्त्ति अनन्त साधक साधुओं की भावना,
सन्ताप हर देती विमल बलशालिनी संभावना | विस्तारती आत्मिक अनन्त सुकान्त गुण रत्नाकरं,
तं दिव्य-भावभरं सदा प्रणमामि सिडगिरीश्वरम् ||३||
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