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నరుడు నడుము
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विधि-विभाग
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उपाध्याय पद चैत्यवन्दन धन धन श्री उवझाय राय, सठतां धन भंजन ।
जिनवर दिसत दुवाल संग, कर कृत जग रंजन ॥१॥ गुण वण भंजण मण गयंद, सुय शृणि किय गंजण ।
कुणा लंघ लोय लोयणे, जत्थय सुय मंजण ॥२॥ महाप्राण में जिन लह्योए, आगम से पद तुर्य।
- तिन पें अहि निशि हीर धर्म, वन्दे पाठक वर्य ॥३॥
उपाध्याय पद स्तवन सांवलिया अलगा रहोनें (ए चाल)हुयने हुयने हुयनेदुरी हुयने। चेतन भाखें सठने (दुरी हुयने ) तूं मुझ पास क्यू आवे (दुरी हुयने ) तुझ ने | कुण बतलावे (दुरी हुयने )। तो संगे निज पंचेन्द्रीनो, रचना
चरम भुलाणो । णाणावरणी खय उपशम से भावेन्द्री मंडाणो (दुरी हुयने) ॥१॥ द्रव्येते परजाप्ते कीना, जाति नामव्यपदेशे, एवंतो गो तुरग गजादिक, क्षणकर्मे उपदेशे ( दुरी हुयने ) ॥२॥ इत्यादिक बहु मुझ कू शंका, तेरे संगे लागी। नील वर्ण की समता सेती, मैं भयो तोसूं रागी ( दुरी हुयने ) ॥३॥ उपकहिये हणियो भवि यानो, अधियां लाभत आय । आधीनां मन पीड़ाना में, मायो येन विलायें ( दूरीहुयने ) ॥४॥ आधिक्ये स्मरिये वर आगम सूत्र से ते उवझाय । तत्सेवा ते हणि सठतां कू चेतन. कुशलता पाय ( दूरी हुयने ) ॥५॥
उपाध्याय पद थुई अंग इग्यारे चउ दे पूरब, गुण पचवीसनाधारीजी। सूत्र अरथधर पाठक कहिये जोग समाधि विचारीजी ॥ तपगुण सूरा, आगम पूरा, नयनिक्षेपै तारीजी ॥ मुनि गुणधारी गुण विस्तारी, पाठक पूजो अविकारी जी ॥१॥ .
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