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जैन-नसार
बारस बारस एगो, पणवीस अट्ठाइ पाण पण्णरस ।
अट्ठय उववासा, सव्वंगं सढ चउसठ्ठी ॥५॥
वकार सहिय पोरिसी, पुरमढ्ढ अवढ्ढ एग दुभत्तेहिं । एगट्ठाणय णिविगई, विलेहिं अत्थं विलेणं च ॥६॥ पण याला चउबीसं, सोलस चउचउहि अट्ठहि कम्मेणं । चउइ दुहिय एगेणय, आयरणाहोइ उववासे ॥७॥ पैंतालीस आगम तप विधि
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गुरु के पास शुभ दिन पैंतालीस आगम तप ग्रहण करे और दृज, पञ्चमी, अष्टमी, ग्यारस तथा चौदस आदि ज्ञान तिथिके दिन अनुकमसे उपवास और एकास करे । जिस दिन जिस आगम का जाप करना हो उस दिन उस आगम का जाप करे और पढ़ें । सिद्धान्त लिखावे, शास्त्र छपवावे, पढ़नेवालों की यथाशक्ति सहायता करे और ज्ञान की वृद्धि करे । पैंतालीस आगमका स्तवनपढ़ अन्यथा किसी दूसरे से श्रवण करे । इस प्रकार ४५ दिन पूर्ण होने पर पैंतालीस आगम की पूजा करावे । मन्दिर अथवा - उपाश्रय में ज्ञानोपकरण चढ़ावे । इस तपस्या के फलस्वरूप जड़ता तथा मूर्खता का नाश हो सुबुद्धि और शुद्ध आत्मज्ञान प्राप्त होती है ।
४५ आगमों का जाप भी ४५ आगमों के स्तवन के साथ दिया गया है ।
ग्यारह गणधर तपस्या विधि
शुभ दिन शुभ मुहूर्त्तमें गुरुके मुखसे ११ गणधर तप ग्रहण करे । ग्यारह दिन उपवास या एकासणा करे । जिस दिन जिस गणधर महाराज का तप हो उस दिन उन्हींके नामकी २० माला का जाप करे । स्तवन के साथ ही ग्यारह गणधरों के जाप दिये गये हैं । चूंकि ये भगवान् महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्य थे, जाति के ब्राह्मण थे, और द्वादशाङ्गी वाणी के रचयिता थे । अतः माङ्गलिक होने पर भव्यात्माओं के लिये ये तप भी