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166ుండుటకు పరుగులు తడుపుకుంటుందనుందడుగురుడు
సంతరించుకున్న विधि-विभाग
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बीस दिनमें एक एक पदकी आराधना करते हैं । इस तरह बीस बीस दिन में एक एक पद की आराधना करके बीसों ओली की तपस्या पूरी करते हैं।
शास्त्रकारों का कथन है कि तप आराधन के दिन यदि शक्ति हो तो अट्ठम (तेला)व्रत करके तप आराधन (आरम्भ) करे।क्रमशः बीस अट्ठम (तेले ) के व्रत कर लेने पर एक ओली पूरी होती है। इस तरह चार
सौ अट्ठम ( तेले ) के व्रत हो जाने पर बीस ओली की आराधना पूरी हो में जाती है । यदि तप करने वाले में अहमव्रत से आराधन करने की शक्ति
न हो तो (वेले ) के व्रत से आरम्भ करे अगर इसकी भी शक्ति न हो तो उपवास द्वारा करे। अगर उपवास से भी करने की शक्ति न हो। तो आयंबिल या एकासण द्वारा तप आरम्भ करे। उस समय शक्ति हो तो अष्ट प्रहरी पौषध करे। यदि अष्ट प्रहरी पौषध करने की शक्ति न हो तो दैवसिक पौषध करे। समस्त पदों की आराधना जहां तक बन सके, पौषध पूर्वक करे । यदि सभी पदों के आराधन में पौषध न कर सके तो आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, साधु, चारित्र, गौतम और तीर्थ इन सात पदों के आराधन के समय अवश्य पौषध करे। इतने पर भी पौषध करने की सामर्थ्य न हो तो देसावगासिक व्रत करे। इसके करने की भी शक्ति न हो तो यथाशक्ति जो व्रत हो सके वही करे और सावध व्यापार का त्याग करे।
तपस्वी के लिये ये बात विशेष ख़याल रखने की है कि जन्म मरणादिक के सूतक की तपस्यायें ओली की संख्या में नहीं ली जाती। अतः सूतक आदि के समय की तपस्या ओली में न गिने। स्त्रियों के लिये ऋतुकाल की तपस्या भी वर्जनीय है । अतः स्त्रियों को भी इस बात का विशेष खयाल रखना चाहिये । तपस्या करते समय पौषध देसावगा1. सिक व्रत आदि धार्मिक क्रिया कोई भी न कर सके तो तपस्या के दिन
दो बार प्रतिक्रमण करे और तीन बार देव वन्दन करे । . समस्त तपस्यायें करते समय ब्रह्मचर्य का सेवन करे। जमीन पर सोवे ।
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