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जन - रत्नसार
तहत्ति ।' कह एक णमोक्कार मुट्ठी बन्द करके गुणे । पीछे जो पच्चक्खाण किया हो उसका नाम लेकर पच्चक्खाण पारण गाथा पढ़े । पच्चक्खाण फासियं, पालियं, सोहियं तीरियं, किट्टियं, आराहियं जं चण आराहियं तस्समिच्छामि दुक्कड़ें' बोल एक णमोक्कार गुणे | बाद खमासमण पूर्वक 'इच्छाकारेण० चैत्यवन्दन करूं ? इच्छं ।' कह 'जयउ सामिय०१ से 'जयवीयराय ०३ तक सम्पूर्ण चैत्यवन्दन कहे तथा क्षणमात्र स्वाध्याय कर पानी पीवे । पीछे आसन पर बैठकर दिवस चरिमं का पञ्चक्खाण ले बाद इरिया वहियं ० ३ कहकर ( आहार संवरण निमित्त ) चैत्यवन्दन करे ।
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यदि मलमूत्र की बाधा मिटाने जाना हो तो 'आवरसहि' पूर्वक निर्जीव भूमि में या स्थंडिल के पात्रमें जावे और 'अणुजाणहजरस गों' कह कर मलमूत्र परठे । पीछे प्राशुक जल से शुद्ध होकर तीन बार वोसिरामि कह ‘मलमूत्र' वोसिरावे । पीछें 'णिस्सीहि' बोलते हुए “पौषधशाला में आवे और एक खमासमण देकर 'इरियावहियं ० ' कहे । अनन्तर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गमणागमणं आलोउं ? इच्छं ।' कहकर इस प्रकार गमणागमण आलोयणा करे । 'आवस्सही करी, प्रासुक देसे जइ, संडासा पूंजी, थंडिलो पडिलेही, उच्चार प्रश्रवण वोसिरावी । णिस्सीहि करी पौषधशाला में आवे । 'आवंति जंतेहि जं खंडियं जं विराहियं तस्समिच्छामि दुक्कड़ ।' ऐसा कह बैठकर स्वाध्याय या ध्यान करे और दिन के चौथे पहर में संध्या पडिलेहण की विधि करे ।
संध्या पडिलेहण विधि
प्रथम एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बहु पुण्णा पोरिसी ? इच्छ' बोल खमासमण दे 'इरियावहियं ० तरसउत्तरी• अणत्य० " कह एक लोगस्स० का काउसग्ग पार प्रगट लोगस्स० कहे । तत्पश्चात् एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पडिलेहण करूं ? इच्छं' कह फिर खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पौषधशाला
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