________________
.
जैन-रत्नसार
Prom...marruirr
'पुक्खरवरदी०१, सुअरस भगवओ करेमि०, अणत्य.' पढ़कर एक लोगस्स या चार णमोक्कार का काउसग्ग करे । बाद 'सिद्धाणं बुद्धाणं०, सुअदेवयाए । करेमि काउसग्गं, अणत्यः' कह, एक णमोक्कार का काउसग्ग कर 'श्रुत देवता की स्तुति-सुवर्ण शालिनी देयातू०२' कहे । अनन्तर 'खित्तदेवयाए करेमि काउसग्गं०, अणत्थ०३ पढ़कर एक णमोक्कारका काउसग्ग पारे तथा क्षेत्रदेवता की स्तुति–'यासां क्षेत्रगताः सन्ति' कहे । बाद खड़े होकर एक णमोक्कार पढ़े और प्रमार्जन पूर्वक बैठकर छठे आवश्यक की मुंहपत्ति पडिलेहण कर भावसे दो वन्दना देवे । पञ्चक्खाण न किया हो और सूर्यास्त होनेवाला होतोपहले पञ्चक्खाणकरले। बाद इच्छामो अणुसहि०४ पढ़करबैठकेमस्तक पर अंजली रखकर ‘णमो खमासमणाणं०५, नमोऽर्हत्सिद्धाः' कहे। बाद श्रावक 'नमोऽस्तु वर्धमानाय की तीन श्लोक पढ़े और श्राविकाएं 'संसार दावानल' की तीन श्लोक पढ़े। फिर ‘णमुत्युणं.' कह, एक खमासमण दे 'इच्छाकारण स्तवन भणुं कहे। गुरुके 'भणेह' कहने पर आसनपर बैठ के 'नमोऽर्हत् ०८ कह एक बड़ा स्तवन ( ग्यारह गाथा या इक्कीस गाथा का स्तवन) वोले । पीछे एक एक खमासमण देकर अनुक्रम से 'आचार्य मिश्र, उपाध्याय मिश्र' तथा सर्व साधुओं को वन्दन करे। पीछे दाहिना हाथ को चरवले घर रख और मुंहपत्ति के साथ बायें हाथ को मुंह के आगे कर 'अड्डाइजेसु का पाठ बोले तत्पश्चात एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण । संदिसह भगवन् देवसिय पायच्छित्त विसोहणत्थं काउसग्गं करूं ? गुरु 'करह' कहे तब 'इच्छं ! देवसिय पायच्छित्त विसोहणत्यं करेमि काउसग्गं, अणत्य कहकर चार 'लोगस्स' या १६ णमोक्कार का काउसग्ग पार प्रगट लोगस्स. बोले । अनन्तर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्
खुद्दोपद्दव उद्यावण निमित्त काउसग्ग करूं ? इच्छं, खुदोपहव उद्धावण 1 निमित्तं करेमि काउसग्गं, अणस्थ०१०' कह चार लोगस्स या १६ णमोकारका काउसम्ग पार प्रगट लोगस्स. कह ।
१-पृष्ठ | २-पृष्ट २२ । ३-पृष्ट ४१ ४--पृष्ठ २२ । ५-पृष्ठ २२ ।। -पृष्ठ २२। ७-पृष्ठ १७१८--पृष्ठ ६18--पृष्ठ २३ । १०-पृष्ठ ४।