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________________ जैनराजतरंगिणी दिन बीत जाने के पश्चात् हसन खाँ के पुत्र मुहम्मद खाँ को राज्य देने का निश्चय किया। हसन की रानी तथा मुहम्मद शाह की माता सैयद वंश की थी। सैयिदों ने राज्य में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए, हसन शाह के ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देने का निश्चय किया। उसे काश्मीर का सुल्तान बना दिया । श्रीवर उत्तराधिकार एवं राज्य प्राप्ति की लोलुपता हेतु होते संघर्ष एवं युद्धों तथा उनसे होते, देश की दुर्दशा देखकर दुःखित होकर मार्मिक शब्दों में अपना विचार प्रकट करता है।-'ईति, आतंक आदि दुःखों के साथ (रहकर) इस देश में जीना अच्छा है किन्तु (इस देश में) राजा के सर्वनाशकारी बहुत सन्तानें न हो।' (१:३:१०१) श्रीवर अपने मत का पुनः समर्थन उदाहरण के साथ करता है-'जब मलिक जसरथ द्वारा बांधकर, सुल्तान अलीशाह मार डाला गया, भ्रातृद्वेष वंश काश्मीरियों का महान् विनाश हुआ, उसी प्रकार पुत्र द्वेष के कारण, इस जैन राज्य का देखा जा रहा है। राजा के घर विनाशकारी बहुत सन्तति न हो।' (१:३:१०७) मृगया : शिकार खेलने की प्रथा काश्मीर में प्रचलित थी। शिकार में शिकारी कुत्तों तथा बाज का भी प्रयोग किया जाता था । जैनुल आबदीन के दुर्बल होने पर, उसके समय ही, उसके पुत्र मन्त्रो अनुशासनहीन होकर, शिकार खेलने लगे थे–'प्रचुर भय के प्रति उदासीन, शास्त्र के प्रति नहीं, अपितु काम शास्त्र के प्रति रसिक, केवल मृगया में आसक्त होकर, कुत्तों द्वारा चमत्कार करता था। सरोवर अथवा अरण्य में जहाँ कहीं भी रहते, उस मृगया रसिक के लिए रात्रि दिन सदश हो गई थी। अन्य नीचता क्या कही जाय, जिसके भृत्य, छुद्र व्यापारी के समान बाज द्वारा पक्षी समूहों को एकत्रित कर, नगर में विक्रय करते थे।' (१:३:६२-६४) श्रीवर ने म्लेच्छों की हिंसा की निन्दा की है। म्लेच्छ विदेशी मुसलमान अथवा उनसे उत्पन्न सन्ताने थी। उनकी उपमा अनेकों जलप्लावन से देता है, जो देश का नाश कर, अकाल की स्थिति उत्पन्न करते हैं-'समक्ष के पशु, गाय, प्राणी, गृह, धान्यादि का हरण कर्ता, वह जलापूर (बाढ़) म्लेच्छों के हिंसा सदृश भयप्रद हो गया था।' (१:३:१२) जल तथा वन में शिकार खेलने की प्रथा थी। जल में पक्षियों तथा वन में पशुओं के शिकार द्वारा जीव हत्या काश्मीर में विदेशी सैयिदों ने चलायी थी-'मृगया रसिक सैयिद लोग, उसी प्रकार के उस राजा को भी, माघ मास में विषय, राष्ट्र आदि के मृग समूहों को मारने (शिकार) के लिए ले गये । (३:५०२) सैयिदों एवं सैन्य के साथ राजा जहाँ-जहाँ निवास किया, वे दिशायें पीड़ित होते, जनों के आक्रन्दन से मुखरित हो उठी । (३:५०३) राजा की सेना पर्वत पर चारों दिशाओं में पंक्ति बद्ध होकर, जहाँ पर निवास की, वहाँ पर द्राक्षा लताच्छेदन के शोक से अति निष्ठुर वाणी एवं प्रचुर क्रन्दन ध्वनि उठती थी। (३:५०४) वहाँ पर अत्यन्त सुखद एवं शान्तपूर्ण पर्वत हिंसक कटकों से उसी प्रकार आक्रान्त हो गये, जिस प्रकार दुर्जनों से साधुजन । (३:५०५) उनको वहाँ आया देखकर, सैयिद बहुत प्रसन्न हुए, जिनकी जीभ बाहर निकली थी, और स्फुरित होते रक्त से, जिनका मुख सिक्त था और जो श्वानों से आबृत थे। (३:५०७) 'मोटे ताजे हमलोगों को हर लो और दुर्बल बच्चों को मत मारों'-मानो इस कहने के लिये ही बच्चों सहित वे मृग राजा के सम्मुख आये थे । (३:५०८) क्रन्दन पूर्वक आयी एवं रुधिर से भीगी उन हरिणियों को मारकर, निर्दयी सैयिदों ने उनके गर्भ से भूमि भर दिया। (३:५१२) उनके वध से तृप्त न होकर, उन पर्वतों को मृग रहित करके, सायंकाल श्रान्त, उस राजा ने घोष समूहों की बस्ती को आक्रान्त करने का आदेश दिया ।' (३:५१३)
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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