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________________ २९८ जैनराजतरंगिणी [२:१६४-१६६ पश्चिमाशागतं श्रुत्वा तमपूर्वार्कसंनिभम् । बहामखानो मन्देहो मन्देह इव सोऽभवत् ॥ १६४ ॥ १६४ पूर्व दिशा रहित, सूर्य सदृश, उसे पश्चिम दिशा में आया सुनकर, मन्दबुद्धि वह बहराम खाँन मन्देह' सदृश हो गया। प्राप्ते सुतेऽन्तिकं सोऽभून्न तदत्यधिकादरः । प्रत्यासन्नविनाशानां धीर्मीत्येव पलायते ।। १६५॥ १६५. पुत्र' के निकट आने पर, (राजा) उसके प्रति अधिक आदर प्रकट नही किया, जिनका विनाश निकट होता है, उनकी बुद्धि भय से मानो पलायित हो जाती है । अत्यभ्यर्थनया मन्त्रिसामन्तानां महीपतिः । यात्रागताय पुत्राय ददौ दर्शनमात्रकम् ॥ १६६ ।। १६६. मन्त्रियों एवं सामन्तों के अति अभ्यर्थना पर. राजा ने यात्रा से आये, अपने पत्र को केवल दर्शन दिया। उसे कारागार में डाल दिया, जहाँ से वह भाग कर लिखता है-'दरबार में बिना सुल्तान की आज्ञा के नौशेरा पहुँच गया। गक्खरों का देश काश्मीर के उपस्थित होने पर, कुछ दरबारियों ने सुल्तान का पश्चिमी-दक्षिणी सीमान्त पर मुसलिम इतिहासकारो कान भर दिया और सुल्तान ने उससे मिलने से के लेखों से प्रकट होता है। इनकार करने के साथ ही किसी भी रूप मे उसे आइने अकबरी मे गक्खरों का क्षेत्र पखली राजकीय सेवा मे लेना अस्वीकार कर दिया अंचल के दक्षिण माना गया है (पृ०:४४२)। (४७६ )।' पाद-टिप्पणी : तवक्काते अकबरी में भी यही घटना दी गयी 'तमपूर्वार्क' पाठ-बम्बई। है-'जब यह समाचार फतह खाँ को जिसने हिन्दु१६४. (१) मन्देह : द्रष्टव्य : टिप्पणी : २ : स्तान में अत्यधिक किलों पर विजय प्राप्त की थी १६३ । और अपार धन-सम्पत्ति एकत्र की थी, पहुँचे तो पाद-टिप्पणी : वह एक भारी सेना लेकर शीघ्रातिशीघ्र काश्मीर पहुँचा। किन्तु वह आज्ञा के बिना आया था, अतः 'अन्तिक' पाठ-बम्बई। साथियों ने उसकी ओर से बातें बनाकर, सुल्तान हैदर १६५. (१) पुत्र : म्युनिख पाण्डुलिपि मे को उससे रुष्ट कर दिया। सुल्तान ने उसे कोरनिश उल्लेख है। हसन बिना सुल्तान की आज्ञा से लौट (अभिवादन) की अनुमति न दी और उसकी आया था अतएव बहराम खाँ तथा मन्त्रियों ने राजा किसी भी सेवा की ओर ध्यान न दिया (४४७)।' का कान भर दिया कि वह राज्य प्राप्ति करने के फिरिश्ता तथा तवक्काते अकबरी का स्रोत एक लिए आया है । सुल्तान यह सुनकर पुत्र का विरोधी हो गया ( म्युनिख : पाण्डु० : ७८ बी०)। ही है अतएव एक ही बात और नाम की गलती दोनों में हो गयी है अन्यथा घटनाएँ ठोक है । केवल यही बात फिरिश्ता तथा तवक्काते अकबरी मे फतह के स्थान पर हसन नाम होने से श्रीवर के फतहशाह के सम्बन्ध में लिखी गयी है। फिरिश्ता वर्णन से घटना मिल जाती है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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