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________________ २:१२१-१२३] श्रीवरकृता २८७ सुमनोवाटशाटान्तर्भवं शोणितवर्षणम् । इति दृष्ट्वा जनः सर्वः क्षते क्षारमिवान्वभूत् ॥ १२१ ॥ १२१. सुमनोवाट' में शाटी ( वस्त्र ) पर रुधिर की वर्षा हुई, इसे देखकर लोगों ने कटे पर नमक छिड़कने जैसा दुःख प्रकट किया। हिन्दुओं का उत्पीड़न : अत्रान्तरे वसन्सैदखानगाहादिपीडनम् । हिन्दुका विदधुः पूर्णनापितोद्वलितक्रुधा ॥ १२२ ।। १२२. इसी बीच पूर्ण' नापित द्वारा वर्धित क्रोध के कारण, हिन्दू सैय्यिद खानकाह आदि को पीड़ित ( नष्ट ) किये। तच्छ्रुत्वा यवनाः सर्वे गत्वा क्रुद्धा नृपान्तिकम् । चुक्रुशुर्येन राजापि द्विजपीडनमादिशत् ॥ १२३ ।। १२३. यह सुनकर, क्रुद्ध सब यवन राजा के पास गये और क्रन्दन किये, जिसके कारण राजा ने भी द्विजों को पीडित करने का आदेश दे दिया। महाभारत मे असमय फल-फूल वृक्षों मे होना अशुभ इसे नामवाचक शब्द माना है। स्थान का पता को द्योतक है अनुसन्धान का विषय है। अनार्ततं पुष्पफलं दर्शयन्ति वनद्रुमाः। (२) शोणित वर्षा : महाभारत में यही बात भीष्म ३ : १ कही गयी है(२) अनार : यह लौकिक अपशकुन से । अशोभिता दिशः सर्वाः यां सुवर्षेः सन्ततः । सम्बन्ध रखता है। काश्मीर में अनार बहुत होता उत्पा उत्पात मेद्या रौद्राश्च रात्रौ वर्षन्ति शोणितम् ।। भीष्म : ३ : २९ है। जम्मू-श्रीनगर मार्ग पर सड़क के किनारों पर पाद-टिप्पणी : अनार के जंगल लगे मिलते है। जंगल में असमय १२२. (१) पूर्ण : द्रष्टव्य : २ : ५२ तथा ३ : फल-फूल लगना, अपशकुन महाभारत ने माना है। १४८ । " उसी का अनुकरण कर अनार का जड़ से फूलना (२) सैयद खानगाह : खानकाह सैयद । श्रीवर लिखता है। अनार के फल एवं फूल टहनियों श्री मोहिबुल हसन का मत है कि यह स्थान में लगते है न कि जड़ में । अनार का फूल लाल खानकाहे मरुअल्ला है । खानकाह शब्द फारसी है। होता है। फूल रंग तथा दवा बनाने के काम मे फकीरों और साधुओं के निवास के लिये निर्माण आता है। पश्चिम हिमालय एवं सुलेमान की पहा कराया जाता है। ड़ियों मे अनार आपसे-आप उगता है। पाद-टिप्पणी पाद-टिप्पणी : १२३. (१) पीड़न : पीर हसन लिखता है१२१. (१) सुमनों वाट : श्रीदत्त ने सुमनो- फिरका हनूद (हिन्दू) को निहायत सख्त तकलीफे वाट को नामवाचक शब्द नही माना है। उसका दी। इससे उन्होंने बाज़ मसजिदों और नयी कवरों अनुवाद बगीचा किया है परन्तु श्रीकण्ठ कौल ने को जिन्हे सुलतान सिकन्दर ने मसाला मलकों के
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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