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२ : ६०-६४ ]
श्रीवरकृता
सुरतालयस्थैभृतैरिवान्तश्छलनप्रवीणैः यः पिशनैर्नरेशो
बिभेति तस्मान्ननु को न मर्त्यः ॥ ६० ॥
शौचालयस्थैः
वशीकृतो
६०. भूत सदृश शौचलायस्थ, सुरतालयस्थ' एवं अन्तस्थ छलना में प्रवीण, पिशुनों द्वारा जो राजा वशीकृत हो गया था, उससे कौन मनुष्य नहीं डरता ?
रहः स्थितं नृपं जातु पिशुनः पूर्णनापितः । अपृच्छत् प्रेरितोऽमात्यैश्चिकीर्षां पूर्वमन्त्रिषु ॥ ६१ ॥
६१. आमात्यों से प्रेरित होकर, पिशुन' पूर्ण किसी समय एकान्त स्थित, राजा से पूर्व मन्त्रियों के ऊपर किये जानेवाले व्यवहार के विषय में पूछा
१ : ४ : ५२ ।
भवत्पक्षविनाशो यैः कृतस्त्वत्पितृमन्त्रिभिः ।
प्राप्तराज्येन भवता त एव प्रबलीकृताः ॥ ६२ ॥
६२. 'जिन तुम्हारे पिता के मन्त्रियों ने आपके पक्ष का विनाश किया, राज्य प्राप्त कर, आपने उन्हें ही प्रबल बना दिया
अमी सोऽपि धूर्तो
६३. 'वे हस्सन कोशेश प्रमुख लोग तुम्हारे अनुज' ( बहराम खांन ) द्वारा समाहत हो रहे है, और वह धूर्त भी तत् तत् लोगों को वश में करने के लिये उद्यत है—
असमर्थत्वं भ्रात्रर्पितभरः तत्ते सपुत्रभृत्यस्य न नाशो भविता
६४. ‘असमर्थ शरीर तुम सर्वदा भाई' ( बहराम खां ) के ऊपर भार डाल देते हो, अतः पुत्र, भृत्य सहित तुम्हारा शीघ्र नाश करेगा ।'
पाद-टिप्पणी :
(६५७-६५८ ) । फिरिश्ता ने वीणा के स्थान पर तम्बूर लिखा है । रोजर्स ने रबाब तथा तम्बूर या वीणा किसी का उल्लेख नहीं किया है ।
( २ ) कनकवर्षी: द्रष्टव्य टिप्पणी : जैन० :
हस्सनकोशेश मुख्यास्त्वदनुजादृताः । तत्तद्वशीकारसमुद्यतः ॥ ६३ ॥
घिया
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'न' पाठ - बम्बई |
६०. (१) सुरतालय : कामगृह ।
सदा ।
चिरात् ॥ ६४ ॥
पाद-टिप्पणी :
६१. ( १ ) पिशुन: पूर्ण नापित चुगलखोर था । वह राजा के पास रहने का लाभ उठाकर लोगों की शिकायत करता था । तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - बोली (पूर्ण) लोगो से घूस लेता था और जिसका वह विरोधी हो जाता था उससे वह सुल्तान को रुष्ट करा देता था ( ६७३ ) । लोली का नाम एक पाण्डुलिपि तथा फिरिश्ता के लीथो प्रति