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२ . ५४-५७]
श्रीवरकृता मबलीलाव्यसनतस्तद्राज्ये बाह्यदेशवत् ।
आसीन्मार्कीकवगौडी देशेऽत्र प्रचुरा सुरा ।। ५४ ॥ ५४ मद्य लीला व्यसन के कारण, बाह्य देशों के समान, उस राज्य में भी अगूर के समान गुड़ से बने सुरा का प्राचुर्य हो गया था।
तन्मघरसिके राज्ञि सर्वभोगपराङ्मुखे ।
खण्डातीक्षुविकारास्ते सुलभा न गुडोऽभवत् ॥ ५५ ॥ ५५. सर्वभोग परांमुख राजा के उस मद्य के प्रति रसिक हो जाने पर, खाड़ आदि ईख के विकार सुलभ नहीं रह गये, गुड़ ( शीरा-शराब ) हो गये।
खुज्याब्दुल्कादिर्यस्यान्तेवासी गीतगुणाम्बुधः ।
मल्लाडोदकनामासीत् तन्त्रीवाद्यगुरुनृपे ।। ५६ ॥ ५६. गीत-गुणों का सागर, खुज्याब्दुल कादिर' का अन्तेवासी मल्लाडोदक' राजा का वीणा वादन का गुरु था।
कूर्मवीणादिवाद्यानां प्राप्यास्माद् गीतकौशलम् ।
आजीवं क्षणमप्यासीन तन्त्रीवादनं विना ॥ ५७ ॥ ५७. इससे कूर्म वीणादि वाद्यों का गीत-कौशल प्राप्त कर, जीवन पर्यन्त ( वह ) तन्त्रीवादन के बिना क्षण भर नहीं रहा।
पाद-टिप्पणी:
केवल वीणा का उल्लेख यहाँ किया गया है। दोनों ५४. (१) बाह्य देश : द्रष्टव्य टिप्पणी : १: के वादक भिन्न व्यक्ति थे। कूर्म वीणा का वादक १ : १२४; २ : १९१ ।
मुल्ला जाद था। केवल वीणा का वादक खोजा पाद-टिप्पणी :
अब्दुल कादिर का शिष्य मुल्ला डोदक अर्थात् पाठ-बम्बई।
दाऊद था।
खुरासान से एक संगीतज्ञ मुल्ला उदी भी आये ५६. (१) अब्दुल कादिर : खुज्या शब्द
थे। श्रीवर ने उसका उल्लेख नही किया है (म्युनिख : ख्वाजा है । पूरा नाम स्वाजा अब्दुल कादिर है।
पाण्डु० : ७३ ए०)। मुल्ला 'उडी' को ही धीवर ने ख्वाजा का अर्थ स्वामी, मालिक आदि होता है।
मुल्ला डोडक लिखा है। यह अनुसन्धान का विषय (२) अन्तेवासी : शिष्य, गुरु के साथ रहनेवाला।
पाद-टिप्पणी : (३) मल्लाडोदक : दोदक = डोडक, मल्ला ५७. (१) कर्म वीणा : इसे कच्छपी वीणा शब्द मुल्ला है। डोदक शब्द दाऊद है। मुसलिम कहते है। इसका दण्ड १८ अंगुल का होता है । नाम मुल्ला दाऊद है। ख्वाजा अब्दुल कादिर का ऊपर का शिरा झुका होता है । दण्ड पर २४ सारिशिष्य था।
काएँ (परदे) होते है। वे प्रायः पीतल की होती (४) वीणा : कूर्म वीणा का १ : ४ : ३२ तथा है। ऊपर की ओर एक गोल तुम्बा दण्ड में लगा