SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 379
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ जैनराजतरंगिणी [२:४२-४६ शेकन्धरपुरीपार्श्वस्वनिर्माणचिकीर्षया अमृतोपवने प्रांशुतरुच्छेदनमादिशत् ।। ४२ ।। ४२. सेकन्धर' पुरी के समीप अपना निर्माण करने की इच्छा से, अमृत' उपवन में उन्नत वृक्षों को काटने का आदेश दिया। छिन्नांस्तान् पुष्पितान् वृक्षान् समीक्ष्यतत्समुत्थिताः। तच्छुचेव व्यधुस्तत्र रोलम्बा रोदनध्वनिम् ।। ४३ ॥ ४३. पुष्पित उन वृक्षों को छिन्न देखकर, उनसे उड़े भ्रमर, मानों शोक के कारण रोदन ध्वनि कर रहे थे। तन्निर्माणग्रहोऽन्येषां न केषां प्रत्यभाद्धृदि । अग्रे दिनपतेर्दीपप्रकाशनरसोपमः ॥४४॥ ___ ४४. सूर्य के समक्ष दीप प्रकाशन रस सदृश, उसके निर्माण का आग्रह, दूसरे लोगों के हृदय को अच्छा नहीं लगा। तद् ब्रूमः क्षीव एवैष करोतीति विनिश्चतम् । स्वाहितापक्रियाहेतोचूर्णितं तं नृपं व्यधात् ।। ४५ ॥ ४५. निश्चित रूप से अतएव मैं कह रहा हूँ कि यह ( मदमत्त ) नापित ही सब कर रहा है, अपने अपकारियों के अपकार हेतु, उसने राजा को भ्रान्त कर दिया था। पूर्ण नापित का क्रूर कर्म : बहूनामथ लोकानां नापितोऽवयवच्छिदाम् । भूपालादाप्तनिर्देशः क्षीबतोऽपि तथाकरोत् ॥ ४६॥ ४६. मदमत्त भी राजा से निर्देश प्राप्त कर, नापित' ने बहुत से लोगों के अवयवों का छेदन करा दिया। १:१९८; शुक० : १.११९; २:७४, ८८. पाद-टिप्पणी: ४२. (१) सेकन्धरपुरी। श्रीनगर। द्र०: २ : ५, ३, ७; २००। (२) अमृत उपवन : श्रीनगर के समीप कहीं था । पुनः उल्लेख नही मिलता। पाट-टिप्पणी: ४४, 'दीप' पाठ-बम्बई। पाद-टिप्पणी: ४५. 'घूर्णित' पाठ-बम्बई । पाद-टिप्पणी: ४६ (१) नापित : नाई, हज्जाम, नाऊ, बाल बनानेवाला । मुसलिम या तुर्की नाऊ था । पूर्ण = लूला । द्रष्टव्य : जैन० : २ ५२; १२२; ३ : १४८ । (२) छेदन : अंगभंग । म्युनिख पाण्डुलिपि में उल्लेख है कि सुल्तान प्रतिहिंसक था। थोडे से भी अपराध के लिए कठोर दण्ड देता था (७७ बी०)।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy