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________________ २४९ १ : ७ : २७१-२७४ ] श्रीवरकृता योऽभूत् सर्वकलानिधिः शुभविधिताभिगम्यो गुणी काव्यज्ञो बहुभाषया गुणिरतः कारुण्यपुण्याकुलः । सोऽयं हन्त समीक्ष्यतेऽवनितले धिक् पापिनोऽस्मान शठान् _ये जीवन्ति शुचा न यान्ति विपिनं संसारतृष्णाजिताः॥ २७१ ॥ २७१. जो सब कलानिधि, शुभ विधि दाता, धीगम्य, गुणी, सब भाषाओं का काव्यज्ञ, गुणियों में रत एवं कारुण्यपूर्ण था, दुःख है, वह पृथ्वी तल पर पड़ा देखा जा रहा है । शठ हम पापियों को धिक्कार है, जो संसार के तृष्णा में पड़ कर, जीवित हैं और शोक से वन नही चले जा रहे हैं। हारेणेव विनाङ्गनाकुचतटी शास्त्रेण हीनेव धीः सूर्येणेव विना प्रफुल्लनलिनी तारुण्यहीना तनुः । चन्द्रेणेव विना यथैव रजनी पत्या विना भामिनी येनैकेन विना नृपेण न बभौ कश्मीरराज्यस्थितिः ।। २७२ ।। २७२. हार के बिना अंगना की कुचतटी, शास्त्र से हीन बुद्धि, सूर्य के बिना प्रफुल्ल नलिनी, तारुण्य-रहित तनु ( शरीर ), चन्द्रमा के बिना रात्रि तथा पति के बिना भामिनी (स्त्री) सदृश, केवल उस राजा के बिना काश्मीर राज्य की स्थिति शोभित नहीं हुयी। श्रीमत्तर्कादिविद्याभ्यसनरसलसद्गर्वसर्वप्रवीण प्रेक्षोद्यदानमानोचितविचितयशोभूषिताशेषदेहः । श्रीजैनोल्लाभदेनो नरपतितिलकः सर्वशास्त्रप्रवीणः कश्मीरान योजयित्वा दिवमपि स गतो योजनायेव नष्टाम् ॥ २७३ ।। २७३. तर्क आदि विद्याभ्यास रस से शोभित, स्वाभिमानवाले सब विषयों में प्रवीण, लोगों को देखकर, उचित दान-मान के द्वारा प्राप्त यश से भषित शरीर एवं सर्व शास्त्रों में प्रवीण, नरपति-तिलक, जैनुल आबदीन काश्मीर को संगठित करके, नष्ट स्वर्ग को भी योजित करने के लिये ही गया है। इत्यादि सन्ततं सन्तो वदन्तोऽत्यन्तचिन्तया । नितान्ततान्तहृदया विश्रान्ति नाभजन्त ते ॥ २७४ ॥ २७४. उस प्रकार निरन्तर कहते हुये, अत्यन्त चिन्ता से नितान्त संतप्त हृदय सज्जन लोग विश्रान्ति ( सुख ) नही प्राप्त किये। पाद-टिप्पणी: २७१. 'छठा' के स्थान पर 'शठान' पाठ-बम्बई। जै. रा. ३२
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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