________________
१:७:१७०-१७३ ] श्रीवरकृता
२२३ यैरस्मत्सदने क्षिप्तः सोऽयं वैरानलः खलैः ।
तच्छमाय कृतोपेक्षा तैस्तैरुभयवेतनः ॥ १७० ॥ १७०. जिन दुष्टों ने हमारे घर में यह वैराग्नि लगाई उन दोनों ओर से वेतनभोगी, लोगों ने ही, उसके समन के लिये उपेक्षा की। .
मद्वर्धितास्ते नश्यन्तु मन्त्रिणस्तनयाश्च मे ।
ये मन्नाशेन तुष्यन्ति राज्यलुब्धा जिघांसवः ॥ १७१ ।। १७१. 'मेरे द्वारा बद्धित, मेरे वे मन्त्री एवं पुत्र नष्ट' हो जाय, जो कि राज्य-लोभी तथा हत्या के लिये इच्छुक हैं और मेरे नाश से ही सन्तुष्ट होते हैं।'
इत्युद्विग्नो महीपालः श्वसन, जपपरायणः ।।
प्राप्तदुःखोऽशपत् सर्वं यास्यति स्मृतिशेषताम् ॥ १७२ ।। ___ १७२. इस प्रकार उद्विग्न एवं दुःखी राजा जप-परायण' होकर, श्वास लेते हुये, शाप दिया-'उनकी स्मृति मात्र शेष रहेगी।'
स्वामी विरक्तस्तत्पुत्रा मिथो वैरपरायणाः ।
किमुज्जीव विधेयं नः कष्टमापतितं महत् ॥ १७३ ॥ १७३. स्वामी विरक्त है, उसके पुत्र परस्पर बैर में तत्पर हैं—'हे ! जीव !! हमलोग क्या करें ? महान कष्ट आ पड़ा है।'
तथा महत्वपूर्ण कागजों पर स्वयं हस्ताक्षर समझ कर फजल ने जैनुल आबदीन की भविष्यवाणी का करता था। उसका स्वास्थ गिर गया था। वह उल्लेख किया है-उसने कहा था कि चक जाति के अपना मन पूर्णतया शासन कार्यो मे पुत्रों के विद्वेष राजकाल मे काश्मीरियों के हाथ से राज्य निकल के कारण नहीं लगा सकता था। मनःस्थिति कर हिन्दुस्तान के सुल्तानों के हाथों में चला बिगड़ जाने से उसने मन्त्रियों को यह कार्य-भार जायगा। बहुत दिनों के बाद यह बात पूरी हुई दे दिया था। इसका दूसरा भाव यह भी हो सकता थी ( पृष्ठ : ४३९ )। है कि सुल्तान इतना अस्वस्थ था कि वह हस्ताक्षर
वह हस्ताक्षर पाद-टिप्पणी : करने में असमर्थ था। सम्भव है दुर्बलता के कारण उसका हाथ काँपता रहा होगा और वह हस्ताक्षर
१७२. ( २ ) जपपरायण : जैनुल आबदीन
तसवीह या माला फेरता था। जप करता था। नही कर पाता था। अतएव यह कार्य-भार भी
मृत्यु काल मे भी उसके ओष्ट जप में हिलते थे मन्त्रियों को सौप दिया।
द्रष्टव्य० : १ : ७ : २१६ । (२) प्रकृति वैगुण्य : अस्वस्थता ।
पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी :
१७३. उक्त श्लोक श्रीकण्ठ कौल संस्करण १७१. (१) नष्ट : आइने अकबरी में अबुल में श्लोक संख्या १७२ का प्रथम दो पाद है।