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________________ २०२ जैनराजतरंगिणी [१ : ७ : ६६-६८ तस्य पुत्रोऽभवच्छाहिमसोदः प्रमये पितुः । सर्व हारितवान् क्षीवः कुर्वन्नुन्मत्तचेष्टितम् ॥ ६६ ॥ ६६. उसका पुत्र शाहि मसोद' हुआ, जो कि पिता के मरने पर, मदमत्त वह उन्मत्त की तरह चेष्टा करते हुए, सब कुछ हार गया। सप्तप्रकृतिधात्वाढयं तन्मल्लेकपुरं महत् । कुपुत्रव्यसनाद् यातं देहवत् स्मरणीयताम् ।। ६७ ॥ ६७. 'कुपुत्र के व्यसन के कारण सप्त प्रकृति से समृद्ध, वह महा मल्लेकपुर सप्तधातु पूर्ण शरीरवत् नष्ट हो गया। मद्यं यल्लोहितं वर्ण बिभर्ति चषकान्तरे । जाने पानप्रवृत्तानां हृद्रक्तेनैव जायते ॥ ६८ ।। ६८. 'चषक' में मद्य, जो लाल रंग धारण करता है, मानो मद्यपान में प्रवृत्त लोगों के हृदय रक्त से ही रक्त वर्ण होता है । राज्य स्थापित कर लिया। जैनुल आबदीन की सहा- पाद-टिप्पणी : यता से दिल्ली के सैय्यद सुल्तान मुबारकशाह की ला क सय्यद सुल्तान मुबारकशाह की ६७. (१) सप्तधातु : 'रसासृङ मांस मेदोऽदुर्बलता का लाभ उठाकर, समस्त पंजाब जीत स्थि मज्जा शुक्राणि धातवः ।' कही-कही धातुओं की लिया। दिल्ली विजय में असफल रहा । मुबारकशाह संख्या १० दी गयी है। उक्त सातो धातुओं में केश, ने एक सेना, उसे पराजिव करने के लिये भेजी। त्वच एवं स्नाय भी जोड देते है। अमरकोश के जसरत कमजोरी का अनुभव कर, कश्मीर भाग , अनुसार : गया । जैनुल आबदीन की संरक्षता में रहा (म्युनिख : 'श्लेष्मादिरस रक्तादि महाभूतानि तद्गुणाः । पाण्डु० : फो० ६९ ए०; तवक्काते अकबरी ३ : इन्द्रियाण्यश्मविकृतिः शब्दयोनिश्च धातवः ॥' ४३५)। ३ : ३ : ६४। पाद-टिप्पणी: पाद-टिप्पणी : पाठ-बम्बई। पाठ-बम्बई। ६६. (१) शाह मसूद : जसरथ का पुत्र मसूद ६८. (१) चषक : सुरापात्र = सुरापान पात्र = था। वह उत्तराधिकार नहीं पा सका। मलिक गुलू प्याला = मदिरा पीने का गिलास। जसरथ का उत्तराधिकार (सन् १४४६-१४४७ ई०) (२) मद्य : हाजी खाँ को शराब की बुरी पाया । उसके पश्चात सिकन्दर खां ने (सन् १४- लत लग गयी थी। शराब के कारण ही उसका पैर ४७-१४६६ ई०) उत्तराधिकार प्राप्त किया। फिसल गया और बीमार होकर मर गया । सिकन्दर के पश्चात फिरूज खांन (सन् १४६६- पीर हसन लिखता है-'कुछ अरसा के बाद १४७२ ई०) खोख्खर या गक्खर सरदार था। इस सुल्तान हाजी खाँ की बुरी हरकत के बायस उससे प्रकार देखा जाता है कि मसोद को कभी उत्तरा- निहायत रंजीदा हो गया (पृ० १८५)। द्रष्टव्य धिकार न प्राप्त हआ और न उसने शासन किया । म्यनिख पाण्ट : ७६TO तथा बी० ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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