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________________ १८४ जैनराजतरंगिणी [१:६:३१-३२ अनन्ततन्तुसंतानवर्णविच्छित्तिसुन्दरः बभौ कौशेयकख्यातो देशो वेशश्च भूपतेः ॥ ३१ ॥ ३१. राजा का अनन्त, ततु, सन्तान के वर्ण विभाजन से सुन्दर तथा कौशेय' देश वेश शोभित हुआ। नानावर्णविशेषचित्रकटकालङ्कारसारोचितो विद्यामानवराजितोऽतिसुखदः कौशेयताख्यातिमान् । श्रीमान् नित्यमहोज्ज्वलोऽतुलगुणः सत्तन्त्रसम्पत्तिभृद् राज्ञा तेन विशेषितो निजधिया वेशोऽपि देशोऽपि वा ॥ ३२ ।। ३२. नाना प्रकार के वर्ण (रंग-जाति) विशेष से विचित्र कटक (सेना-कंकण) अलंकार से युक्त विद्यावाले मनुष्यों से अति सुखद, (विद्या-लक्ष्मी) नवीन-नवीन चित्र पंक्ति से शोभित, कोश युक्त, (रेशमी वस्त्रों के लिये प्रसिद्ध) श्रीमान सदैव उत्सव से या शोभा से सम्पन्न, अतुलनीय गुणों से पूर्ण (असंख्य गुण सूत्रों से युक्त), उत्तम वंशपरम्परा (किंवा उत्तम सूत्र) वाले, उस देश को अथवा वेश को उस राजा ने अपनी बुद्धि से विशिष्ट बना दिया। इति जैनराजतरङ्गिण्यां चित्रोपचयशिल्पवर्णनं नाम षष्ठः सर्गः ॥ ६ ॥ इस प्रकार जैनराजतरंगिणी में चित्रोपचय शिल्प वर्णन नामक षष्ठ सर्ग समाप्त हआ। पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी: ३१. (१) कौशेय: रेशमी वस्त्र - कौशेय ३२. कलकत्ता संस्करण का उक्त श्लोक पंक्ति कालिदास काल से ही प्रसिद्ध है। निर्नाभि कौशेय- संख्या ५२६ है । मुपात्त बाणामभ्यङ्गेन पथ्य मलञ्चकार ।' कुमार- पाद-टिप्पणी: सम्भव : ७ : ७, 'सराग कौशेयक भूषि तोख' (ऋतु- इस तरंग में कलकत्ता संस्करण के ४९५ से संहार : ७:८); द्रष्टव्य तारीख रशीदी: पृ० १० ५२६ पंक्ति के ३२ श्लोक तथा बम्बई संस्करण में ४३४; आइने अकबरी : जरेट० : २: ३५५; तुजुक्क० : २: १४७; बहारिस्तान शाही. पाण्डु : ___३२ श्लोक यथावत है। उनके संख्या में अन्तर फो० ४७ ए०। नही है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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