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________________ १७१ १:५:१०३-१०५] श्रीवरकृता दृष्ट्वा सरोन्तरे श्वेता हिमान्यो भ्रमणाकुलाः । तीर्थस्नानाप्तकैलासशृङ्गभङ्गिनमं व्यधुः ॥ १०३ ॥ १०३. सरोवर के श्वेत हिमपुंज को इधर-उधर घूमते (तैरते) देखकर, (लोगों ने) तीर्थस्थान के लिये आये' कैलाश शृंग (शिखर) का भ्रम किया। सत्यं विष्ण्ववतारः स येन भक्त्या प्रदक्षिणम् । त्रीन् वारानकरोन्नूनं ज्ञातुं स्वक्रमविक्रमम् ।। १०४ ।। १०४. वास्तव में विष्णु ' अवतार उस राजा ने अपने पद-पराक्रम को जानने के लिये, भक्ति पूर्वक तीन बार प्रदिक्षणा की। योऽभूदागमसिद्धार्थो नौबन्धनगिरिस्तदा । प्रत्यक्षार्थः कृतो राज्ञा बद्धवा नौकां यदागतः ।। १०५ ।। १०५. नौका-बन्धन कर, राजा ने आगम से सिद्ध अर्थवाले, नवबन्धन' गिरि का उस समय साक्षात्कार किया। उत्पत्ति मानी जाती है (भाग ३ : २० : ४५; वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, वुद्ध और भविष्य ४. ६ : ९; ब्रह्मा०२ : २५ २८; ३ : ७ : १७६, का हानवाला कलकि अवतार है। किसी देवता का ८: ७१) । गदाधर मन्दिर के प्रागण में राजा रणवीर संसारी प्राणियों के शरीर धारण करने को अवतार सिंह द्वारा लगे विक्रमी १९२९ = सन् १८७२ कहते है । ई० में देवनागरी लिपि के शिलालेख में हिमा- पाद-टिप्पणी: लय उत्तर स्थित किन्नरवर्ष का उल्लेख किया १०५. (१) नवबन्धन गिरि : वनिहाल से गया है। पश्चिमी दिशा मे चलने पर, तीन शिखरों का एक पाद-टिप्पणी: समूह मिलता है। उसे विष्णु, शिव एवं ब्रह्म शिखर १०३. (१) कैलाश : द्रष्टव्य : पाद-टिप्पणी : कहते है। उनकी ऊँचाई पन्द्रह हजार फीट है। १ : ३ : १२१ । त्रिदेवों ने इसी स्थान से जलोद्भव असुर से युद्ध कर, सतीसर को हरी भूमि बनाया था। इन शिखरों पाद-टिप्पणी : में धुर पश्चिमी शिखर १५५२३ फीट ऊँचा है। इसी १०४. (१) विष्णु अवतार : जोनराज तथा को नवबन्धन तीर्थ कहते है। नीलमत के अनुसार श्रीवर दोनों ही ने जैनुल आबदीन को नारायण जल प्लावन के समय भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में किंवा विष्णु का अवतार माना है (जोन० : ९: इस शिखर से नाव बांधा था। नाव स्वरूप ७३) । उसे श्रीमद्दर्शननाथ अर्थात् धर्मराज लिखा दुर्गा स्वयं हो गयी थी। ताकि प्राणी नाश है (जोन० : ९७५)। होने से बच जाय। यह कथानक वाइविल वर्णित पुराणों की मान्यता के अनुसार विष्णु का ही महात्मा नूह के आर्क से मिलती-जुलती है। (नील० : अवतार होता है। विष्णु के २४ अवतार हुए है। ३९-४१, १७८; हरचरित चिन्तामणि : ४ : २७; उनमें दस प्रधान है-मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, सवितार ३ : ४, १२ : ५ : ४३) ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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