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________________ १६६ जैन राजतरंगिणी दीपाठ्यं रङ्गमण्डपम् । चक्रे रात्रौ कविबुधार्चितम् ।। ९२ ।। गगनं तारकापूर्णं तारकापूर्ण यत्रान्योन्यं तुलां चक्रे २२. जहाँ पर रात्रि में कवि (शुक्र) एवं बुधा (बुध) से युक्त, तारकापूर्ण आकाश तथा कवियों एवं विद्वानों सहित दीपों से समृद्ध, रंगमण्डप, परस्पर समानता प्राप्त कर रहे थे । प्राप्तैर्नानानागरिकामुखैः । अमावस्यादिने शुशुभे शुभदं यत्र शतचन्द्रं भुवस्तलम् ।। ९३ ।। ९३ अमावस्या के दिन जहाँ पर आये हुये, बहुत-सी नागरिकाओ के मुखों से शुभद पृथ्वीतल, शत चन्द्र युक्त समान शोभित हो रहा था। पाद-टिप्पणी : ९२. ( १ ) कवि ( शुक्र ) : शुक्र पौराणिक मान्यता के अनुसार भार्गव कुलोत्पन्न थे । यह भृगु ऋऋषि तथा हिरण्यकश्यपु की कन्या दिव्या के पुत्र थे। उसे कवि का भी पुत्र माना गया है। अतएव उसका पैतृक नाम काव्य पड गया । यह दैत्यों के गुरु, आचार्य एवं पुरोहित थे भगवान् कृष्ण ने गीता मे श्रेष्ठ कवियों में कवि 'उशनस्' अर्थात् शुक्र का उल्लेख किया है। [१:५:९२-९३ शुक्र एक ग्रह है। ग्रहों में यह सबसे अधिक कान्तिमान है। उच्चतम कांति की अवस्था में यदि यह होता है, तो दिन में खाली अाँखों से भी देखा जा सकता है । रात्रि काल में क्षितिज के ऊपर आ जाता है, तो इसके प्रकाश से पादपो की छाया बन जाती है। सौर क्रम में इसका दूसरा स्थान है। इसका व्यास ७५८४ मील है। पृथ्वी के बराबर है। चंद्रमा के समान इसमें भी कलायें होती है । वैज्ञानिकों का मत है कि इसपर प्राणियों का रहना सम्भव नही है। सूर्य से ६ करोड़ बहत्तर लाख मील दूर है। सूर्य की परिक्रमा २२४ दिनों मे पूरी करता है। गगनमण्डल में गुरु एवं बुध के द्वारा सुशोभित तथा जनसमुदाय को उसके दर्शन से प्रसन्नता प्राप्त होती है। शुक्र का पर्यायवाची नाम कवि है और बुध का पर्यायवाची नाम विद्वान है। इसीलिये घर्यक लिष्ट वाक्यों का प्रयोग किया गया है। सुकवियों के द्वारा सभामण्डप उसी प्रकार आनन्द विभोर होता था, जिस प्रकार आकाश में बुध शुक्र के उदय होने पर गगनमण्डड में परिपूर्णता भाषित होती है। (२) बुध द्रष्टव्य टिप्पणी १४ १८ । सौरमण्डल मे सूर्य के सबसे समीप बुध, तत्पश्चात् शुक्र अनन्तर पृथ्वी पड़ती है। पृथ्वी के पश्चात् मंगल, बृहस्पति एवं शनि है। बसन्त एवं शरद ऋतुओं में । यह दूरबीन से देखा जा सकता है । वसन्त ऋतु में सूर्यास्त के पश्चात् दृष्टिगत होता है। केवल दो घन्टों पश्चात् स्वत: अस्त हो जाता है। शरद् काल में सूर्योदय के सूर्योदय के पूर्व दिखायी देता है । पूर्व और पश्चिम दोनों दिशाओं में समयो के अन्तर से उदय होता है । प्राचीन काल में इसके नाम इसलिये दो पड गये थे । सूर्य से वह ३ करोड ६० लाख मील दूर तथा सूर्य की परिक्रमा ८८ दिनों में करता है, जब कि पृथ्वी ३६५ दिनों में करती है। (३) तुलाचक्र कवि ने तराजू के दोनों पड़ों को संतुलित करते हुये एक पलड़े मे बुध-शुक्र (गृह) गगनमण्डल के तारक और दूसरे पलड़े में विद्वान कवियों की प्रतिभा का तौल किया है । क्योंकि तुला राशि राशिचक्र की सप्तम राशि है और शुक्र की अपनी राशि है कवि अपने स्थान पर सुशोभित होते हैं, जैसे कि शुक्र तुला राशि पर । उनका महत्व रात्रि में अधिक होता है, क्योंकि शुक्र
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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