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________________ श्रीवरकृता किमन्यद् द्विजवद् देशे सर्वे ग्रन्था मनोरमाः । कथावशेषतां याताः पद्मानीव १:५:७७-८० ] हिमागमे ।। ७७ ।। ७०. अधिक क्या वर्णन करें, इस देश में ब्राह्मणों की तरह सभी ग्रन्थ', उसी प्रकार कथा शेष रह गये, जिस प्रकार हिमागम के समय कमल । भूषयता सुमनोवल्लभेनात्र राज्ञा नवीकृताः पुनः सर्वे मधुनेव भूषित कर, ७८. सुमन्नोबल्लभ नृप ने पृथ्वी को जिस प्रकार वसन्त ऋतु भ्रमरों को । १६१ क्षितिम् । मधुव्रताः ॥ ७८ ॥ उसी प्रकार सबको नवीन बना दिया, पुराणमीमांसाः दूरादानाय्य वित्तेन विद्वद्भयः प्रत्यपादयत् ।। ७९ ॥ ७९. पुराण, तर्क, मीमांसा एवं अन्य पुस्तकों को वित्त द्वारा दूर' से मंगा कर, विद्वानों को प्रदान किया । पुस्तकानपरानपि । मोक्षोपाय इति ख्यातं वासिष्ठं ब्रह्मदर्शनम् । मन्मुखादशृणोद् राजा श्रीमद्वाल्मीकिभाषितम् ॥ ८० ॥ पाद-टिप्पणी : ७७. ( १ ) ग्रन्थ : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : ५ : ७५ । पाद-टिप्पणी : ७९. (१) दूर : सुल्तान ने हिन्दुस्तान, इरान, इराक, तुर्किस्तान में अपने आदमियों को ग्रन्थ खरीदने अथवा प्राप्त करने के लिये भेजा ( बहारिस्तान शाही : पाण्डु० : ४७ बी०; तारीखे हसन पाण्डु०. १२० बी०; हैदर मल्लिक पाण्डु० : १२० ए० ) । जहाँ ग्रन्थ खरीदे नहीं जा सकते थे, वहाँ के लिये आदेश दिया कि लिपिको प्रचुर धन देकर, उनकी प्रतिलिपि करा ली जाय ( बहारिस्तान शाही : पाण्डु० : ४८ ए० ) । सुल्तान ने एक बड़ा पुस्तकालय इस प्रकार तैयार कर लिया था, जो फतहशाह के समय तक जै रा. २१ ८०. मोक्षोपाय के लिये, प्रसिद्ध वाल्मीकि मुनि कृत वासिष्ठ' ब्रह्मदर्शन को राजा ने मेरे मुख से सुना । कायम रहा। तत्पश्चात् शाहमीरवंशियों के गृहयुद्ध तथा विदेशी आक्रमणों के कारण नष्ट हो गया। ( तारीखे हसन पाण्डु० : १२० बी०; हैदर मल्लिक : १२० ए० ) । पाद-टिप्पणी : उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ४६६वीं पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का ८० वाँ श्लोक है । ८०. (१) वासिष्ठ ब्रह्मदर्शन : योगवासिष्ठ उत्तर रामायण कहा जाता है। उसमें वेदान्त, सांख्य, योग, वैशेषिक मीमासा न्याय के अतिरिक्त बौद्धदर्शन का भी समावेश मिलता है । उसके दर्शन के व्याख्या की अपनी शैली है । उसमें किसी दार्शनिक भावों का खण्डन न कर, सर्वदा नवीन दृष्टिकोण सरल एवं बलवती भाषा में रखा गया है। यह ग्रन्थ भारतीयदर्शन एवं विचारों का मौलिक संग्रह है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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