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________________ १ : ५ : ७०-७३] श्रीवरकृता येषां स्वप्नेऽपि पाण्डित्यं नाभ्रूज्जातुचिदन्वये | तेsपि भूपप्रसादेन जाताः पाण्डित्यमण्डिताः ॥ ७० ॥ ७०. स्वप्न में भी, जिनके वंश में कभी पाण्डित्य नहीं हुआ था, वे भी राजा की कृपा से, पाण्डित्य में शोभित हो गये थे । वर्धित जीवनोप याताः सहस्रशाखत्वं विद्याः ७१. देव (राजा) ने सद जीवनोपायों से फलप्रद, विद्याओं को वर्धित किया, जिससे वे कल्पलताओं' के समान, सहस्त्र साखाओं वाली हो गयी थी । न सा विद्या न तच्छिल्पं न तत्काव्यं न सा कला । श्रीजैनभूपते राज्ये नाभूद् या प्रथिता भुवि ॥ ७२ ॥ सदा । फलदाः कल्पलता इव ।। ७१ ।। ७२. वह विद्या, वह शिल्प, वह काव्य, वह कला नही थी, जो कि जैन राजा के राज्य में पृथ्वी पर प्रसिद्ध या प्रचलित नहीं हो गयी ? विदुषां मान्यतां दृष्ट्वा भूपतेर्गुणिबान्धवात् । काङ्क्षन्ति स्मापि सामन्ताः पाण्डित्यं नित्यमादरात् ॥ ७३ ॥ १५९ पाद-टिप्पणी : ७०. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ४५६ वीं पंक्ति तथा बम्बई का ७०वां श्लोक है । पाद-टिप्पणी : ७३ राजा के गुणियों के प्रति बन्धुभाव, एवं नित्य समादर के कारण, विद्वानों की मान्यता देखकर, सामन्त लोग भी, पाण्डित्य की कामना करते थे । ७१. ( १ ) कल्पलता इन्द्र के नन्दन कानन की लता सब इच्छाओं को पूरी करती है-नाना फलैः फलति कल्पतेव भूमिः - ( भतृ० : २ : ४६ तथा १ : ९० ) कल्पलता दान का भी उल्लेख मिलता है । सुवर्ण की दस लताएँ तथा सिद्धि, मुनी, पक्षी आदि बना कर दान किया जाता है । पाद-टिप्पणी : ७२. भरतमुनी के नाट्यशास्त्र का श्लोक १ : ११६ उक्त श्लोक का पूर्वार्द्ध है : 'न तज्ज्ञानं न तच्छिल्पं न सा विद्या नासौ योगो न तत् कर्म नाट्येऽस्मिन् न सा कला । यन्न दृश्यते ' ॥ ॥ ११६ ॥ समय ( १ ) विद्या : जैनुल आवदीन के विदेशो से भी विद्वान लोग राजाश्रय प्राप्त करने के लिये प्रवेश किये। उनमे सैय्यद मुहम्मद रूमी, काजी सैय्यद अली शिराजी, सैय्यद मुहम्मद लुरिस्तानी, काजी जमाल, सैय्यद मुहम्मद शीस्तानी आदि मुख्य थे । वे अपनी जन्मभूमि त्याग कर काश्मीर में आबाद हो गये ( वहारिस्तान शाही : पाण्डु० : ४८ बी०-५६ ए० ) । काजी जमाल जो सिन्ध से आया था, उसे सुल्तान ने काजी बनाया : तारीख हसन पाण्डु० : ११९ ए०; हैदर मल्लिक पाण्डु० : ११८ बी०, ११९ बी० ) । मौलाना कबीर जैनुल आबदीन का शिक्षक था । वह हेरात पढ़ने के लिये चला गया था । उसे सुल्तान ने बुलाकर शेखुल इस्लाम बना दिया ( तारीख हसन पाण्डु० : १२० ए० ) । मुल्ला अहमद, मुल्ला नादरी तथा मुल्ला फतही राजकवि थे (बहारिस्तान शाही : पाण्डु० : ५६
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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