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________________ १ : ५ : ४०-४३] श्रीवरकृता यत्र तीरे सुरेश्वर्याः क्षेत्रं भुक्तिविमुक्तिदम् । वाराणस्यधिकं भाति तीर्थराजिविराजितम् ।। ४० ॥ ४०. जिसके तटपर, तीर्थ पक्ति शोभित, भुक्ति एव विमुक्तप्रद, सुरेश्वरी का क्षेत्र वाराणसी से भी अधिक शोभित होता है। विहारैरग्रहारैश्च मठैः सुकृतकर्मठैः । आश्रमैरश्रमै राजवासः स्वर्गोपमा व्यधात् ।। ४१ ।। ४१. बिहारों एवं अग्रहारों से, सुकृत कर्मठ मठों से, श्रम-निवारक आश्रमों तथा राज निवासों से, स्वर्ग सदृश बना दिया था। दी(श्चतुष्किकाहस्तैनृत्यन्त इव सूनृताः । दृश्यन्ते ये जनैदूराद्धेमच्छत्रवरोदराः ॥ ४२ ॥मध्य युगलम्।। ४२. हेम छत्र से सुन्दर मध्य भागवाले सूखप्रद जिन्हें लोग दूर से दीर्घ चतुष्किका (चार स्तम्भ) रूप हाथों से नाचते हुए के समान देख रहे थे । मध्य युगलम् ॥ येषां सिद्धपुरी नाम प्रसिद्ध नृपतेगृहम् । स्वसौधैः कुरुते सिद्धविमानावलिविभ्रमम् ॥ ४३ ॥ ४३. जिनमें सिद्धपूरीनाम का प्रसिद्ध राजा का घर अपने सौधों से, 'सिद्धों के विमान पंक्ति का भ्रम, उत्पन्न कर रहा था। से कर्क रेखा की ओर जाता है। दक्षिणायण में जिस समय रात्रि एवं दिन दोनों वरावर होते है, तो इसके विपरीत गति होती है अर्थात मकर रेखा की उसे अयन सपात कहते है । गर्भाधान से लेकर मृत्यु ओर से कर्क रेखा की ओर जाता है। दो पक्ष का पर्यन्त सभी संस्कार उत्तरायण मे ग्राह्य है। गीता एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का स्पष्ट कहती हैएक अयन, दो अयन ( उत्तरायण एवं दक्षिणायन ) अग्नि ज्योति रहः शुक्ल: पण्मासा उत्तरायणम् । का एक संवत्सर होता है। मकर से मिथुन की छः तत्र प्रपाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ॥ राशियों को उत्तरायण अर्थात सायन मकर से लेकर धूमोरात्रिस्तथा कृष्णः षण्मासा दक्षिणायनम् । सायन मिथुन की समाप्ति तक होता है। उत्तरायण में तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निर्वर्तते ॥ दिन बढ़ता है। इसमें सूर्य या चन्द्रमा पूर्व से पश्चिम पाद-टिप्पणी : को जाते हैं। कर्क से धनु की संक्रान्ति, जब सूर्य या ४०. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का ४२६ चन्द्र की गति दक्षिण की ओर होती है। राशिचक्र ीक्ति तथा बम्बई का ४० वा श्लोक है। ६६ वर्ष ८ मास मे विषुवत् रेखा का एक फेरा पूरा (१) वाराणसी : काशी = बनारस । करता है। यह दो भागो मे विभक्त प्रागयन तथा पश्चादयन होता है। अयन संक्रम-मकर एवं कर्क पाद-टिप्पणी की सक्रान्ति है। सूर्य का क्रान्तिवृत्त विषुवत् रेखा पाठ-बम्बई। को वर्ष में दो बार अर्थात ६ मास पर काटता है। ४३. ( १ ) सिद्धपुरी . जोनराज ने सिद्धि
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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