SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ जैनराजतरगिणी [१:३: १०८-११० इति मार्गे कथाः शृण्वन् ग्राम्याणां जैनभूपतिः । बधात् कुतनयं निन्दन् प्राप सुयपुरान्तरम् ।। १०८॥ १०८ मार्ग में इस प्रकार ग्रामीणों की कथा सुनते हुए एवं वध करने के कारण कुपुत्र की निन्दा करते हुए, जैन भूपति सुय्यपुर पहुंचा। तीरद्वये वितस्तायाः पितापुत्रबलद्वयम् । न्यवीविशत् समासन्नं परस्परजयोद्यतम् ।। १०९॥ १०९. जय हेतु उद्यत एवं निकट आयी, पिता तथा पुत्र की दोनों सेनाएँ वितस्ता' के दोनों तटों पर पहुंची। अत्रान्तरे हाज्यखानः पर्णोत्सात् तूर्णमागतः ।। सुपणे इव सद्वर्णो देशाभ्यण समासदत् ।। ११० ॥ ११०. इसी बीच पर्णोत्स' से शीघ्र आकर, सुवर्ण सदृश सुन्दर वर्ण वाला हाजी खाँन देश के समीप पहुंचा। काश्मीरी में कहावत है-'लोग नाम घकुर' तथा पाद-टिप्पणी : 'खुकुर चुस' लोग मुत' । जसरथ ने जैनुल आबदीन बम्बई का १०८वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की की सहायता की थी। बदले में सुल्तान ने भी जसरथ ३२१वीं पंक्ति है। की सहायता धनादि से दिल्ली के सुल्तानों के खिलाफ १०९. (१) वितस्ता : सुल्तान ने दरिया की थी। तवक्काते० : ३ : ४३५ तथा आइने : झेलम के जनवी किनारा पर डेरा डाल दिया । दूसरी जरेट०:२: २८८ । जसरथ सन् १४२३ ई० में तरफ आदम खाँ ने बाप के मुकाबला मे अलम लड़ता मारा गया था। तफाबुल बुलन्द कर दिया ( पीर हसन : १८४ )। (२) अलीशाह : द्रष्टव्य जोन० : राजतरं तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है-'आदम खाँ गिणी : श्लोक० : २४७, २५०, २५६, ३३३ ने नदी पार करके नदी के उस ओर पड़ाव किया ३३५; जैन० ३ : २६५; ४ : १४२ । और सुल्तान नगर (श्रीनगर ) से निकल कर पाद-टिप्पणी : सोयापुर ( सुय्यपुर) पहुँचा तथा प्रजा को प्रोत्साहन बम्बई का १०७वां श्लोक तथा कलकत्ता की ३२०वीं पंक्ति है। प्रदान किया ( ४४४ : ६६७)।' १०८. (१) जैन : सुल्तान जैनुल आबदीन। पाद-टिप्पणी: कलकत्ता के पाठ में स्वय्यपुर है उसे सुयपुर उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का ३२२वी किया गया है। पंक्ति तथा बम्बई संस्करण का १०९वा श्लोक है। (२) सुय्यपुर : सोपोर । फिरिश्ता लिखता पाठ-कलकत्ता । 'सद्वर्णदेशाम्यण' समास युक्त है-'सुल्तान विजय के पश्चात् अपनी सेना से पद अर्थप्रतीति में बाधक है अतः उसे पृथक् किया मिल गया और शिवपुर (सोपोर) पहुँचा जब कि गया है। आदम खाँ ने दरया बेहुत (वितस्ता-झेलम) के दूसरे ११०. (१) पर्णोत्स : पूंछ : उन्नीसवीं तट पर शिविर लगाया था ( ४७३ )।' शताब्दी में राजा रणजीत सिंह ने वहाँ के राजा
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy