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________________ १:३ : ९९-१०१] श्रीवरकृता १०५ उच्चः सत्फलदो यथायमहमप्येतादृगेतावता स्पर्धा यावदियेष हन्त जनकेनैकेन मन्दः सुतः । भास्वानभ्युदितः स तावदतुलः सर्वप्रकाशोधतो यन्माहात्म्यवशेन वक्रगतयो ध्वस्ता भवन्ति स्वयम् ।। ९९ ।। ९९. जिस प्रकासर यह उन्नत एवं सत्फलप्रद है, उसी प्रकार मुझे भी दुःख है कि जबतक इतनी स्पर्धा पिता से मन्द पुत्र ने की, तबतक सबके प्रकाश हेतु उद्यत, अतुलनीय सूर्य उदित हो गये, जिनके माहात्म्यवश कुटिलगामी स्वयं ध्वस्त हो जाते हैं । तद्देशकष्टदैर्दुष्टः प्रजानां नाशहेतुना। आदमखानो वित्राणो लक्ष्म्या भाग्यश्च तत्यजे ।। १०० ।। १००. आदम खाँन जो कि प्रजाओं के विनाश का हेतु था, उस देश के कष्टप्रद दुष्टों ने उस त्राण रहित को लक्ष्मी एवं भाग्य से वंचित कर दिया। ईत्यातङ्कादिभिर्दुःवरं देशेऽत्र जीव्यते । सर्वनाशकरी मास्तु भूभर्तुर्बह्वपत्यता ॥ १०१ ॥ १०१. ईति', आतंक आदि दुःखों के साथ (रहकर) इस देश में जीना अच्छा है किन्तु (देशमें) राजा के सर्वनाशकारी बहुत सन्तान न हो । पाद-टिप्पणी: ९९. बम्बई का ९८वां श्लोक तथा कलकत्ता की ३११वीं पंक्ति है। पाद-टिप्पणी : १००. बम्बई संस्करण का यह ९९वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की ३१२वी पंक्ति है। पाद-टिप्पणी: बम्बई का १००वा श्लोक तथा कलकत्ता की ३१३वी पंक्ति है। १०१. (१) ईति : पीड़ा, दुःख, संकट, विपत्ति आदि से अर्थ अभिप्रेत है। (१) अतिवृष्टि, (२) अनावृष्टि, (३) टिड्डी, (४) चूहा, (५) तोता तथा (६) बाह्य आक्रमण आदि से देश पर ६ प्रकार की ईतियों का उल्लेख मिलता है-ईति ६ प्रकार की होती है अतिवृष्टिनावृष्टिः शलभाः मषकाः शुकाः प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः। जै रा. १४ सात ईतियों का भी उल्लेख मिलता हैअतिवृष्टिरनावृष्टिमूषिकाः शलभाः खगाः । प्रत्यासन्नाश्च राजानः सप्तैता ईतयः स्मृताः ।। ईति का अर्थ विप्लव भी होता है। ईतिडिम्बप्रवासयोः ( अमर० : ३ : ३ : ६८ )। तुलसीदास ने ईति का इसी अर्थ में प्रयोग किया हैदशरथ राज न ईतिभय नहिं दु:ख दुरित दुकाल । प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब सब सुख सदा सुकाल । सूरदास ने भी इसी अर्थ में प्रयोग किया हैअब राधे नाहिन ब्रजनीति । सखि बिनु मिले तो ना बनि ऐहै कठिन कुराज राज की ईति । कवि गोकुल ने भी लिखा है बसिनो ओर की वायु बहै यह सीत की ईति है बीस बिसा मै। राति बड़ी जुग सी न सिराति रह्यौ यि पूरी दिशा विदिशा में । द्र० जैन० ४ : ५२२ ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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