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________________ जैन राजतरंगिणी राष्ट्राधिकारिणं तत्र नत्थभट्टं भटैः सह । हत्वा कृत्वा च कदनं देशोत्पिञ्ज क्रुधा व्यधात् ॥ ९२ ॥ ९२. वहाँ पर क्रोध से भटों के साथ राष्ट्राधिकारी नत्थभट्ट को मारकर तथा विनाश कर के, देश में उत्पजं उपद्रव किया। अथोदतिष्ठत् तुमुलस्तकालं उन्नद्धखानसन्नद्धयुद्धेक्षणसुदुःसहः ॥ ९३ ॥ ९३. उन्नद्ध खाँ के सन्नद्ध युद्ध के कारण देखने में दुःसह तुमुल उठा । अष्टाविंशाब्दवदसस्मिन पञ्चत्रिंशेऽपि वत्सरे । वैरं नीत्वा पिताgat पिशुनैः कारितो वधः ॥ ९४ ॥ ९४. अट्ठाइसवें वर्ष के समान उस पैतीसवें वर्ष भी पिशुनों ने पिता-पुत्र में बैरभाव उत्पन्न करके वध कराया । १०२ सैन्ययोर्द्वयोः । पाद-टिप्पणी : पाठ: बम्बई । कलकत्ता संस्करण में यह श्लोक नही है । किन्तु बम्बई में है । अतएव इसे रखा गया है । बम्बई का ९१वाँ श्लोक है । ९२. (१) उत्पिज्य : पीर हसन लिखता है— आदम खाँ ने उसे जंग में शिकस्त देकर, सोपोर लूट लिया ( पृ० १८४) । म्युनिख पाण्डुलिपि में उल्लेख है कि हाजी खाँ के पहुँचने के पूर्व आदम खाँ ने सोपोर पर आक्रमण किया । वहाँ के अधिकारी ने आदम खाँ का सामना किया परन्तु आदम खाँ द्वारा वह मारा गया और आदम खाँ ने नगर को लूट लिया । श्रीवर तथा म्युनिख पाण्डुलिपि को मिलाकर पढ़ने से यही निष्कर्ष निकलता है कि नत्थभट्ट सोपोर का हाकिम था वह प्रतिरोध करते मारा गया था ( म्युनिख पाण्डु० : ७५बी०; तवक्काते अकबरी : ३ : ४४४ ) । तवकाते अकबरी भी यही लिखती है- समस्त नगर नष्ट-भ्रष्ट हो गया ( ४४४ ) । [ १ . ३ : ९२-९५ तत्रत्या दरदा वान्ये परितः सरितो जले । श्वपूर्णमभूत् सरः ।। ९५ ।। अन्य जन चारों ओर से नदी जल में ममज्जुस्तद्भयाद् येन ९५. उसके भय से वहाँ के दरद' या जिससे सर शवपूर्ण हो गया । डूब गये । फिरिश्ता लिखता है - 'घोर युद्ध हुआ। युद्ध मे आदम खाँ पराजित हो गया। उसके बहुत वीर सैनिक पीछे हटते हुए मार डाले गये' ( ४७३ ) । पाद-टिप्पणी : बम्बई का ९२ श्लोक तथा कलकत्ता की ३०५वी पंक्ति है । पाद-टिप्पणी : ९४. बम्बई का ९३ वाँ श्लोक तथा कलकत्ता की ३०६ वी पंक्ति है । ( १ ) अठ्ठाइसवें = सप्तर्षि ४५२८ = सन् १४५२ ई० = सम्वत् विक्रमी, १५०९ = शक सम्वत् १३७४ । ( २ ) पैतीसवें = सप्तर्षि ४५३५ = सन् १४५९ ई० = विक्रमी १५१७ = शक सम्वत् १३८२ । पाद-टिप्पणी : ९५. बम्बई का ९४ व श्लोक तथा कलकत्ता की ३०७ पंक्ति है । (१) दरद दारद - दरद देश का कल्हण ने
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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