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१:३ . ४४-४७]
श्रीवरकृता शैलपीठं विधायोच्च जयापीडपुरान्तरे ।
सरस्तीर्थे मनोहारि राजवासं स्वकं व्यधात् ।। ४४ ।। ४४. जयापीड में ऊँचे शैलपीठ का निर्माण कर, सरोवर के तटपर, अपना मनोहारी राज निवास का निर्माण कराया
उदीपडितं जीणं निर्लण्ठ्योपसरोवरम् ।
महाप्रज्ञो नृपश्चक्रे तद्वद् राजगृहावलिम् ॥ ४५ ॥ ४५. महाप्रज्ञ राजा ने सरोवर के निकट उदीप (बाढ़) में डूबे एवं जीर्ण, उसे तोड़-फोड़कर, उसी तरह से राजगृहावलि बनाया।
नागयात्रादिने यत्र प्रत्यब्दं दिनपञ्चकम् ।
गणचक्रोत्सवे राजा योगिनो भोगिनो व्यधात् ॥ ४६ ॥ ४६. जहाँ पर नागयात्रा के दिन, गणचक्रोत्सव के अवसर पर, प्रतिवर्ष पाँच दिन के लिए योगियों को भोगी बना दिया।
यत्र कादम्बरीक्षीरव्यञ्जनादिप्रपूरिताः ।
कृत्वा पुष्करिणीः सर्वान् स यथेच्छमभोजयत् ।। ४७॥ ४७. जहाँ पर वह राजा पुष्करणियों को कादम्बरी , (सुरा) क्षीर, व्यञ्जनादि से परिपूर्ण कर, सब लोगों को इच्छानुसार भोजन कराता था।
पाद-टिप्पणी :
(२) गणचक्रोत्सव = गुणी गणों का सह४४. बम्बईः ४३ वा श्लोक तथा कलकत्ता की भोज । तीन पुरुषों के समुदाय को गण कहते हैं । २५७ वी पंक्ति है। सरस्तीरे का पाठ सन्दिग्ध है। (धर्मदीक्षा : जैनग्रन्थ . १३ : ५४; २६ : ६३८)। (१) जयापीडपुर = अन्दरकोट ।
पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी:
४७ बम्बई का ४६ वा श्लोक तथा कलकत्ता ४५. बम्बई का ४४ वाँ श्लोक, कलकत्ता की की २५९ वीं पंक्ति है। २५८ वीं पंक्ति है।
कलकत्ता के 'पूरित' के स्थान पर बम्बई का प्रथम पद में बुडित तथा 'जीर्ण' का पाठभेद पारिता सन्दिग्ध है।
(१) कादम्बरी- कोकिल, सरस्वती, वाणी, पाद-टिप्पणी :
मदिरा = कदम्ब के पुष्पों से खीची गयी शराब४६ बम्बई का ४६ वाँ श्लोक तथा कलकत्ता निषेव्य मधुमाधवाः सरसयत्र कादम्बरम् ( शि०४ : की २२९ वीं पंक्ति है।
६६ ) । कादम्बरी साक्षिकं प्रथम सौहृद मिष्पते (१) नागयात्रा = द्रष्टव्य टिप्पणी : जोन- (श० ६)। कादम्बरी मद विधूणित लोचनस्य युक्तं राज : ६५४।
हि लाङ्लभूतः पतन पृथिव्याम्-उद्भट ।