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जैन राजतरगिणी
जगृहे स च हाज्ये धरखानीयं
वित्तौघं
गृहग्रामादि
देवगम् ।
पानीयमिव वाडवः ।। ४ ।।
४. उसके हाजी (हैदर ) ' खाँ के गृह ग्राम आदि धन समूह को, उसी प्रकार ग्रहण कर लिया, जिस प्रकार बड़वाग्नि जल को ।
ततः प्रभृति ज्येष्ठः स
कश्मीरान्तनु पाग्रगः ।
यौवराज्ये सुखं तद्वद् बुभुजे पञ्चशः समाः ॥ ५ ॥
५. तब से नृप का अग्रगामी, वह ज्येष्ठ पाँच वर्ष, उसी के समान भोग किया ।
करे और वहाँ उसने बहुत से लोगों को जिन्होंने विद्रोह उभाडा था, पकड़ कर हाजी खाँ ने उनका वध करवा दिया और उनकी सम्पतियाँ ले ली । उसके इस कार्यवाही से हाजी खाँ के जो कुछ सैनिक साथी बच गये थे, वे भी हाजो खाँ का साथ त्याग कर आदम खाँ के साथ हो गये ( ४७२ ) ।
पाद-टिप्पणी :
४. ( १ ) हैदर : हाजी खाँ ही हैदर शाह है। शाहमीर वंश का नव सुलतान पिता जैनुल आवदीन की मृत्यु के पश्चात् हुआ था । अग्रज अर्थात् ज्येष्ठ भ्राता आदम खाँ को कभी सुलतान बनने का अव सर नहीं मिला।
[१:२:४-५
पाद-टिप्पणी:
५. (१) यौवराज्य जोनराज ने युबराज पद का उल्लेख ( ३२९, ४८५, ६८८, ७०२ तथा ७३२ ) किया है । सुलतान कुतुबुद्दीन ने हस्सन को युवराज बनाया था। पीर हसन लिखता है— सुलतान ने इस वाकया के बाद आदम खाँ को अपना वलीअहद बनाकर इन्तजाम और आवादी मुल्क में मशगूल हुआ ( पृष्ठ १८४ ) ।
भारतीय सुलतानों ने इस प्राचीन भारतीय प्रथा को स्वीकार कर लिया था । परशियन में इस पद का नाम वलीअहद है । शुक भी उल्लेख करता है कि मुहम्मद शाह ने शाह सिकन्दर को अपना
(आदम ख) काश्मीर के अन्दर यौवराज्य' पद
.
युवराज बनाया था ( १ : ९४ ) । कौटिल्य ने एक पूरा अध्याय युवराज के विषय मे लिखा है ( १ : १७ ) । युवराज का भी अभिषेक होता था । राजा के शासनकाल मे कनिष्ठ भ्राता अथवा ज्येष्ठ पुत्र युवराज बनाया जाता था (रामा० : अयो० : ३, ६; काम० : ७ : ६; शुक्र० २ १४ - १६) । राम ने लक्ष्मण के अस्वीकार करने पर भरत को युवराज बनाया था ( रामा० : युद्ध० : १३१ : ९३ ) । युधिष्ठिर ने भीम को युवराज बनाया ( शान्ति० : ४१) । राज्य के भिन्न भागों में युवराज अथवा राजकुमार राज्यपाल बनाकर भेजे जाते थे । बिन्दुसार ने अशोक को तक्षशिला शासक बना कर भेजा था । अशोक ने कुणाल को तक्षशिला आमात्यों के अत्याचार से आसन्न विद्रोह दमन करने के लिये भेजा था। हाथी गुम्फा खारवेल अभिलेख से प्रकट होता है कि खारवेल स्वयं ९ वर्षों तक युवराज
पद पर था ।
युवराज का नाम मन्त्रियों की प्राचीन मान्यता
नुसार सूची में नाम नहीं मिलता। किन्तु उसे १८ तीर्थों में एक माना है ( शुक्र : २ : ३६२-३७० ) । शुक्र ने युवराज एवं आमात्य दल को दो बाहू तथा आँखें है, लिखा है ( शुक्र : २ : १२ ) । युवराज को वेतन मन्त्री, पुरोहित, आमात्य, सेनापति, रानी एवं राजमाता के समान मिलता था । कौटिल्य ने युवराज को (११२) अट्ठारह तीर्थों में एक तीर्थ माना है। मथुरा सिहस्तम्भ तथा चन्द्रावती