________________
१ : १ : १७५ ]
श्रीवरकृता
इत्थं
सेवक पैशुन्यात् समरे तत्र तद्वर्षे
पितापुत्रविरोधतः । वीरलोकक्षयोऽभवत् ।। १७५ ।।
१७५. इस प्रकार सेवकों की पिशुनता से पिता-पुत्र के विरोध के कारण, उस वर्ष वहाँ में वीरों का विनाश हुआ।
युद्ध
अलाउद्दीन खिलजी ने मुगलों के मुण्डों पर मीनार का निर्माण कराया था। यह मीनार अर्ध भग्नावस्था में सन् १९५२ ई० मे मौजूद थी, जब मैने उसे प्रथम बार देखा था। वह हौज खास के चौराहे के समीप दिल्ली से महरौली जाने वाली सड़क के वाम पाप मे थी। उन दिनों सफदरजंग से महरौली तक न तो आबादी थी और न कोई इमारत बनी थी । केवल सफदरजंग हवाई अड्डा तथा तत् सम्बन्धी कुछ इमारते थीं। कुतुबमीनार के पास एक टी० बी० का अस्पताल था । आज सन् १९७१ ई० में सफदरजंग से महरौली तक इमारते बन गयी है । उस समय अलाउद्दीन के मीनार के पास पठान शैली की मसजिदें बनी थीं। कुछ मजारे भी थी। आज बहुत कुछ समाप्त हो गया है। मजारों का पता नही है । केवल मीनार का कुछ अंश शेष रह गया है ।
पीरहसन लिखता है—मुखालिकों के सरों का एक ऊँचा मीनार बनवाया। और हाजी खाँ के लश्कर के कैदी कतल कर डाले । ( पृ० १८४ )
५३,
द्रष्टव्य : म्युनिख पाण्डु : ७५ ए. तथा तवकाते अकबरी : ३ : ४४३
तबकाते अकबरी में उल्लेख है-हाजी सां ने
हीरपुर से नवर पहुँचकर घायलों का उपचार आरम्भ किया। सुलतान विजयोपरान्त कश्मीर (श्रीनगर) पहुँचा । उसने आदेश दिया – 'शत्रुओं के सिर का मीनार तैयार किया जाय।' हाजी खाँ की सेना के बन्दियों की हत्या कर दी गयी और आदम खाँ ने उन लोगों को जिन्होंने हाजी खाँ को मार्गभ्रष्ट किया था, बन्दी बनाकर करल कर दिया तथा उनके परिवारों को कष्ट पहुँचाया। इस कारण अधिकांश लोग पुक होकर आदम खाँ के पास पहुँच गये ( ४४३ = ६६४) ।
।
फरिस्ता लिखता है— उसी समय सुल्तान राजधानी लौटकर एक मीनार अथवा (खम्भा ) वनवाया उसके चारों तरफ उन विद्रोहियों का सर लटकवा दिया- जो युद्ध मे बन्दी बनाकर मार डाले गये थे ( ४७२ ) ।
सुलतान के प्रकृति के विरुद्ध यह क्रूर कार्य प्रतीत होता है 'मुखागार का अर्थ अभी स्पष्ट नहीं है। यदि पाठभेद सुखागार मान लिया जाय तो उसका अर्थ प्रासाद निर्माण होगा। मुण्टों का प्रासाद या सुखागार कैसे बनेगा समझ मे नहीं
आता ।