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जैनराजतरंगिणी
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रक्षा करने तथा उन्हे राज्य पर, शोभित करने की उसके राजपुत्र न होने के कारण करते थे। दुर्योधन ने प्रतिज्ञा किया। पिता ने भीष्म के त्याग पर उसे इसे मान्यता दिया। दोनों मित्र हो गये। द्रौपदी इच्छामृत्यु प्राप्त का वर दिया। सत्यवती का पुत्र स्वयंम्बर में द्रौपदी ने उसे सूतपुत्र कहकर, विवाह चित्रांगद राजा बना। गन्धर्वो से युद्ध में वह मारा करने से अस्वीकार कर दिया। कौरव-पाण्डव महागया। सत्यवती के आदेश से विचित्रवीर्य भारत युद्ध में इसने कौरवों की ओर से भाग लिया राज सिंहासन पर बैठा। विचित्रवीर्य के विवाह के था। कुंती ने अपना भेद कर्ण पर प्रकट किया। लिये काशिराज की कन्या अम्बा, अंबिका एवं कर्ण ने चारो पाण्डवों को न मारने की प्रतिज्ञा अम्बालिका का हरण किया। अम्बा ने कहा कि वह किया । केवल अर्जुन से युद्ध करने की बात दुहराई । विवाह नही करेगी। क्योंकि वह मन से शल्य का द्रोणाचार्य के पश्चात् कर्ण महाभारत युद्ध का सेनावरण कर चुकी थी। भीष्म ने उसे छोड़ दिया। पति हुआ। कर्ण महान दानी था। उसने अपना शाल्य ने उससे विवाह करना अस्वीकार कर दिया। कवच एवं कुण्डल भी उतार कर इन्द्र को दे दिया अम्बा ने भीष्म से विवाह करने के लिये कहा । भीष्म था। युद्ध के समय उसका पुत्र वृषसेन मारा गया। ने अस्वीकार कर दिया। अम्बा भीष्म से विवाह हेतु इसका रथ युद्धक्षेत्र मे फंस गया था। कर्ण उतर तपस्या करने लगी। एक दिन उसके नाना होत्र- कर पहिया निकालने लगा। निशस्त्र कर्ण पर कृष्ण वाहन सृजय ने उससे परशुराम से सहायता लेने के के संकेत पर, अर्जुन ने इसी समय बाण प्रहार कर लिये सुझाव दिया। परशुराम तथा भीष्म में चार मार डाला। कर्ण यद्यपि कौरवों के पक्ष से युद्ध कर दिनों तक इस बात को लेकर युद्ध हुआ। परशराम रहा था और सच्चाई से युद्ध किया परन्तु अर्जुन के हार गये। भीष्म ने विवाह नही किया। अम्बा अतिरिक्त शेष पाण्डवों को न मारने की प्रतिज्ञा भीष्म को मारने के लिये तपस्या करती रही और किया था। शिखण्डी रूप में जन्म लिया।
(६) कौरव : कुरुवंशियों को कौरव कहा गया ___कौरव-पाण्डव युद्ध में भीष्म कौरवपक्ष से युद्ध है। चन्द्रवंशी राजा ययाति के पुत्र पुरु थे। उनसे किये । प्रथम सेनापति थे । उनकी सहानुभूति पाण्डवों पौरव वंश चला। इस वंश मे एक प्रतापी राजा के साथ थी। युद्ध में हत हो गये। शरशय्या पर
कुरु हुए। कुरु के नाम पर कुरुदेश, कुरुक्षेत्र तथा पड़े रहे । सूर्य के उत्तरायण होने पर, प्राण त्याग करुजग्गल स्थानों का नाम पड़ा। इनकी एक शाखा किया।
उत्तर कुरु नाम से प्रसिद्ध हुई। मनुस्मृति में कुरु, (५) कर्ण : अविवाहित अवस्था में कर्ण कुन्ती मत्स्य, पांचाल एवं शौरसेन को ब्रह्मर्षियों का देश के गर्भ से सूर्य द्वारा उत्पन्न हुआ था। जन्म लेते ही माना है। इसी वंश में कौरव एवं पाण्डव हुए थे। कुन्ती ने कर्ण को अश्व नदी में प्रवाहित कर दिया। वे एक ही कुरु वंश की शाखा थे। हस्तिनापुर कौरव वह बहता-बहता चर्मणवती नदी में आया। वहाँ तथा इन्द्रप्रस्थ पाण्डवों की राजधानियाँ थीं। महासे यमुना एवं भागीरथी में बहता आया। भारत युद्ध के पूर्व जिन पाँच गाँवो को युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ ने उसे देखा। जल से मांगा था उनमें सोनप्रस्थ तथा पाणिप्रस्थ भी थे। वे निकाल कर, अपनी पत्नी राधा को पालन के लिये आधुनिक सोनपत एवं पानीपत है। बौद्धसाहित्य में दे दिया। कर्ण पर जन्मजात कवच एवं कुण्डल थे। सोलह जनपदों में कुरु का उल्लेख किया गया है। राधा ने उसका नाम वसुषेण रखा। द्रोणाचार्य से कुरु वंश में शन्तनु हुए। शन्तनु के पुत्र चित्रांगद शस्त्र विद्या सीखा । • कर्ण का अपमान पाण्डव आदि एवं विचित्रवीर्य थे। विचित्रवीर्य की रानियों से दो