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१ : १ : १६२ - १६५ ]
श्रीवरकृता
शस्त्रकृत्तस्फुरद्वीरशिरः कमलनिर्भरा जीवनाशा चलत्पत्रा नलिनी
१६२. शस्त्रों से कटे तथा स्फुरित होते, बीरों के आशा रूप चंचल पत्रों से युक्त, रणभूमि नलिनी ' हो गयी थी ।
शौर्यमत्यद्भुतं दृष्ट्वा सूनोस्तत्कटकस्य च । पुनर्जातमिवात्मानं रणोत्तीर्णं नृपोऽविदत् || १६३ ।।
पाद-टिप्पणी :
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रणभूरभूत् ।। १६२ ॥
शिर कमल से परिपूर्ण तथा जीवन की
१६३. पुत्र तथा उसके सैन्य का अति अद्भुत पराक्रम देखकर, राजा ने रण पार करने पर, अपना पुनर्जन्म ही माना ।
कृत्वा सर्वदिनं युद्धं बलाद् भृत्यैर्निवारितः ।
हाज्यखानः सवित्राणः समरात् स न्यवर्तत ।। १६४ ॥
१६४. दिनभर युद्ध कर, भृत्यों द्वारा बलात् निवारित होकर, वह हाजी खाँ रक्षापूर्वक युद्ध से परांमुख' हुआ।
भग्नं निजानुजं दृष्ट्वा पश्चाल्लग्नो विविग्नधीः ।
अग्रजोऽथावधील्लग्नान्मग्नांस्त्रासार्णवे भटान् ।। १६५ ।।
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१६५. अपने अनुज को पराजित देखकर, पीछा करता, क्षुब्ध अग्रज ' ( आदम खाँ ) ने संत्रास - सागर में मग्न, उसके अनुगत भटों को मार डाला ।
१६२. (१) नलिनी : कल्हण ने चिता ज्वाला श्रीवर ने रणभूमि की
की उपमा नलिन से दी है।
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उपमा नलिनी से दिया है चिता मनुष्य को भस्म कर देती है, रणभूमि अर्थात नलिनी भी मनुष्यों को नष्ट करती है ( कल्हण : रा० : २ : ५६ ) । पाद-टिप्पणी :
१६४. ( १ ) परांमुख = तवकाते अकबरी में उल्लेख है - 'हाजी खाँ यद्यपि उसने जो कुछ किया था, उससे लज्जित था, परन्तु कुछ वीरो के प्रयत्न से सेनाओं की पक्तियाँ ठीक कर, रणक्षेत्र में पहुंचा और प्रातः काल से सायंकाल तक युद्ध होता रहा । अन्त में हाजी खाँ के सेना की पराजय हुई और आदम खाँ
ने युद्ध में अत्यधिक वीरता का प्रदर्शन किया ( ४४२-६६४ ) ।
फिरिस्ता लिखता है - हाजी खाँ राजकीय सेना का भयंकर आक्रमण सहन न कर सकने के कारण घोर युद्ध के पश्चात, जो प्रातः काल से सायंकाल तक हुआ था, पराजित हो गया और हूरपुर भाग गया ( ४७१ ) ।
पाद-टिप्पणी :
१६५. ( १ ) अग्रज = आदम खाँ : फिरिस्ता लिखता है - अनेक वीर सेनानी दोनों पथों से मारे गये। आदम खाँ ने इस युद्ध में बड़ी बहादुरी का परिचय दिया ( ४७१ ) ।
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