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________________ ११ : १२८-१२९] श्रीवरकुता इत्युक्तिः पैतृकी प्रोक्ता किंतु सत्यमहं ब्रुवे । नश्यन्ति भूपाच्छयेनाग्रात् त्वद्भटाश्चटका इव ।। १२८ ।। १२८. इस प्रकार तुम्हारे पिता की उक्ति मैने कह दी। किन्तु मै सच कहता हूँ। सेना द्वारा श्येन से चटक' के समान तुम्हारे भट नष्ट हो जायेंगे ।' इति रुक्षाक्षरामुक्ति श्रुत्वा विप्रस्य ते भटाः । छित्वा कर्णौ व्यधू रक्तादायुधेषु विशेषकान् ॥ १२९ ।। १ १२९. इस प्रकार रुक्षाक्षर भरी उक्ति सुनकर उन भटों ने विप्र के कान काटकर रक्त से आयुधों पर थापा दे दिये। पाद-टिप्पणी : १२८. ( १ ) चटक गौरेया पक्षी । पक्षियों में गौरैया छोटी तथा बड़ी सीधी पक्षी होती है । मुझे स्मरण है, मेरी माँ गौरैया को भीगा चावल का दाना देती थी । उसकी जाति ब्राह्मण समझी जाती थी । गंगातट पर भी स्त्रियाँ गौरैया को चावल खिलाती थी। अब यह प्रथा अन्न की मँहगाई के कारण बन्द हो गयी है। श्येन अर्थात बाज के सम्मुख, जिस प्रकार गौरैया क्षणमात्र भी ठहर नहीं सकती, उसी प्रकार राजा की सेना से विरोधी भट अर्थात योद्धा सरलता पूर्वक नष्ट हो जायेंगे। . ४५ पाद-टिप्पणी १२९. (१) कान काटना भारतीय एवं विश्व परम्परा के अनुसार दूत अवध्य माना गया है । परन्तु मुसलिम इतिहास मे इस परम्परा की प्राय: अवहेलना की गयी है । कुतुबुद्दीन सुल्तान के समय भी वृत बन्दी बना लिया गया था ( जो० ४७१) । दूत सुदूर प्राचीन काल से अवध्य माना गया है । भारत में यह बात सर्वदा मानी गयी है । दूत का राजा के समान आदर किया जाता था। ऋग्वेद मे कई स्थलों पर दूत का वर्णन है। एक स्थान पर अग्नि को दूत बनाया गया था ( १ : १२ : १ ; १ : १६१ : ३; ८ : ४४ : ३; १० : १०८ : २४) कौटिल्य ने दूत के विषय में एक अध्याय ही लिखा है (११६) नीति निर्धारण के उपरान्त दूत को उस राजा के पास भेजना चाहिए । जिस पर आक्रमण आसन्न होता है ( कामन्दक : १२ : १) । मनु ने इस विषय पर बहुत सुन्दर लिखा है कि यदि दूत का सन्देश सुनकर राजा क्रोधित हो जाय, तो दूत को कहना चाहिए- 'सब राजा दूत के मुख से बातें सुनते हैं। भयभीत किये जाने पर भी राजा का सन्देश दूत को देना ही पड़ता है । निम्न जाति के दूतों का भी वध नहीं करना चाहिए। उस दूत की बात ही क्या है जो ब्राह्मण है ( मनु० : ७ : ६५ ) ' । रामायण में स्पष्ट कहा है कि सज्जन दूत-वध की आज्ञा नही देते । परन्तु कुछ अवसरों पर उसे कोडे मारने, मुण्डित कर, बाहर निकाल देने का आदेश दिया गया है ( रा० : ५ ५२ : १४-१५ ) । वर्तमान काल मे भी दूत अवध्य माना जाता है, यदि वह देश मे गुप्तचर का कार्य करता है, तो उसे उसके राष्ट्र से कहा जाता है कि उसे वापस बुला ले यदि दूतावास के राज्य कर्मचारी । गुप्तचर का कार्य करते पकड़े जाते है, तो उन्हें दण्ड मिलता है। यहाँ दूत का नाक तथा हाथ काटना अनुचित कहा जायेगा । . ( २ ) थापा: आयुधों पर रक्त छिड़कना या उस पर छापा लगा देना पुरानी प्रथा है । इसे एक प्रकार की शस्त्र-पूजा तथा शुभ मानते हैं। म्यान से कृपाण निकाल लेने पर उसे रक्तदान देना चाहिए।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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