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________________ भूमिका १०७ फतह खाँ लो० ४४६२ वर्ष = सन् १४८६ ई० मे पुनः काश्मीर विजय की आशा किया। फतह खाँ भैरव गलस्थान मे पहुंच गया मार्गेश बाल राजा सहित मार्गांवरोध के लिये शुर पुर पहुॅचा धावण मास में फतह खाँ ने पर्वत पार किया । काचगल मार्ग से बढा । गुसिकोडर स्थान मे ताज भट्ट आदि का सैन पुँज, वायु के समान फतहखान के सैन्य सागर को क्षुब्ध कर दिया । मार्गपति शीघ्र सेना एवं बाल नृप सहित युद्ध करने के लिये आया। कुछ सैयिद सैनिक मारे गये। गुसिकोट्टार ने सैनिक हताहतों की सध्या सैविद तथा फतह af के प्रथम युद्ध से अधिक थी लूट पाट होने लगी। सेफडामर तथा जहागीर मर्गेश का सामना हो गया। जहाँगीर घायल हो गया । मार्गपति का साथियो ने साथ त्याग दिया । परन्तु एक अश्व ने मार्गपति की रक्षा की। विदेशी सैनिको ने इसी समय विद्रोह किया। खान जैसे आया था, वैसे ही वापस चला गया। इसका लाभ उठाया गया । अफवाह फैला दी गयी, 'फतह खाँ बन्दी बना लिया गया। सैफडामर युद्ध विमुख हो गया। कुछ समय पश्चात् वास्तविकता मालूम हुई सेफ डामर शूर पुर मार्ग से फतह के खाँ पास पहुँचा । तृतीय वार भी काश्मीर विजय में फतह खाँ विफल रहा। वह पीछे हटता पूछ पहुँच गया । मम्मियों एवं सामतो की निष्ठा सन्देहास्पद थी। मन्त्रि मण्डल स्वेच्छाचारी था। जनता नियन्त्रणहीन थी। फतहखान का पक्ष लेने के लिये सभी उत्सुक थे पुरवासी अनुराग हीन थे। राजगृह कोश रहित था । मार्गेश शस्त्राघात की पीड़ा से ब्याकुल था । सैनिको के साथ फतह खाँ चौथी बार राज्य कामना से चटिकासार पर्वत से लौटा । मार्गेश ने गाँवों में आग लगी देता । भाँगिल त्याग कर सेना सहित युद्धार्थ आया। बाल नृप के साथ साथदेवत पर सेना स्थित किया । रात्रि काल में सैफ डामार ने आक्रमण किया । मार्गपति की सना भंग कर दिया। फतह खाँ के साथ कम सेना थी । परन्तु काश्मीर सेना के मनोबल तोड़ने मे सफल हो गया । सैफ डामर से अनिष्ट की आशंका देखकर, मार्गपति नगर में आगया नगर रक्षा की दृष्टि से वितस्ता पुल तोड़ दिया गया। पीरुज प्रतिहारादि मंडव राज्य से आये । राजा का पक्ष त्याग दिये। खान पक्ष का आश्रम ग्रहण किये । नोसराजानक सहित मिया मोहम्द ने राजसेना से विद्रोह कर दिया। वहन के पुत्र राजा की किंचित मात्र चिन्ता न की । राजसेना नष्ट हो गयी । मार्गेश जहाँगीर भयभीत होकर जल्लाल ठाकुर के यहाँ गया । एक भूमिगुहा मे पहुँच कर जैसे स्मृति होन हो गया। खसी ने जनपदो को लूट लिया। भयाकुल नर-नारी नंगी भाग गयी । पूर्वावकार का स्मरण कर, वली लोगों की अबलाओं का मार डाला । दरिद्र लूट पाट से धनी तथा धनी द्वारिद्र हो गये। राजा के वल सहित नष्ट हो जाने पर वे राजवल्लभ जन, वे सुन्दर स्रियाँ एवं वे सेवक कथा शेष हो गये । ( ४:६३६) वह राजा दो वर्ष सात मास नृपासन पर आसीन था । लो०फिर्य पाल ने मुहम्द शाह को विशंप्रस्थ पदच्युत राजा की सम्पूर्ण वृत्ति निश्चित ४५६२ = सन् १४८६ ई० आश्विन मास द्वितीया को राज्याच्युत हुआ में पकड़कर शत्रुपक्ष को समर्पित कर दिया। राजधानी के प्रांगण में, कर, रक्षा भार, डामरो को दिया गया । उपद्रव के समय खशो ने दाह के अतिरिक्त खूब लूटपाट की करोड़ो के धनी वणिक, तृण से तन ढककरा लज्जा की रक्षा किये। 'यदि जीत हो गयी, तो तीन दिन तक लूट की छूट दी जायगी' – इस आश्वासन देने के कारण, मन्त्रीगण लूटपाट के समय निरपेक्ष बैठे रहे । जनता की रक्षा नही किया ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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