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________________ भूमिका ९५ सुल्तान खुरासान के मुल्ला जादक से कूर्मवीणा, श्रीवर से तुम्ब वीणा वादन सुनता था। जाफराण आदि से दुष्कर तुरुष्क रागो से गजा मनोविनोद करता था। उस समय वीणा एवं कण्ठ का स्वर एक जैसा प्रतीत होता था। नोत्थ सोम ने 'जैन चरित' लिखा था। वह राजा का निकटवर्ती था। देशी काश्मीरी भाषा का पण्डित बोध भट्ट ने 'जैन प्रकाश' नाटक की रचना की थी। 'शाहनामा' में पारगत भट्टावतार ने 'जैन विलास' नामक ग्रन्थ लिखा था। राजा बीणा, तुम्ब एवं रबाब वाद्यों का वादन सुनकर, प्रसन्न होता था। विद्वान् गायक एवं भृत्यों पर राजा कनकवर्षा करता था। पुष्प लीला समाप्त कर, राजा पुनः श्रीनगर लौट आया। राजा ने लहर दुर्ग की यात्रा की। उसने अनेक अन्नसत्र खोले । कृषि की उन्नति के लिये सुधार किये। चारों ओर धान की ढेरियाँ लगी दिखाई देती थी। कुल्या एवं नहरो से सिंचाई की प्रचुर व्यवस्था की गयी। छिछली भूमि मे सरोवर खुदवाकर, कमल तथा सिंघाडा लगाये गये । तैरते खेतों को भी उपजाऊ बनाया गया। मारी नदी को हस्तिकर्ण क्षेत्र में प्रविष्ट करा कर, सिन्धु वितस्ता सगम तक का क्षेत्र धान्यमय कर दिया। स्मशान मे बिना शुल्क दिए लोग शव दाह करने लगे। जैनुल आबदीन के समय विद्याओं की उन्नति हुई। सभी प्रकार की कलायें तथा विद्याएँ विकसित हुई । बीनने के लिए तुरी तथा वेमा का प्रयोग किया गया। पुस्तकों का अनुवाद किया गया। सर्वसाधारण का ज्ञान भण्डार भरने लगा। सिकन्दर बुतशिकन के समय जो लोग विदेशों में चले गये थे, वे पुन. देश में बुलाये गये। पुराण, तर्क, मीमासा एवं अन्य ग्रन्थ बाहर से मँगाकर उनका अध्ययन आरम्भ किया गया। जो जिस भाषा के प्रवीण था, उसे उसी भाषा में पढाया जाता था। धातु वाद, पथ ग्रन्थ, एवं कल्पशास्त्रों का अनुवाद किया गया। मुसलमान भी उनका अध्ययन करने लगे। बृहत्कथा सार एव हाटकेश्वर संहिता का भी अनुवाद हुआ। सुल्तान ने आदि पुराण, सुनकर, नौ बन्धन तीर्थ यात्रा लौकिक ४५३९ = सन् १४६३ ई० मे की। इस यात्रा मे उसके दोनों पुत्र हाजी खाँ और बहराम खाँ साथ थे। सुल्तान यात्रा कर, नाव से लौटा । नाव पर श्रीवर ने सुल्तान को गीत गोविन्द गा कर सुनाया। सुल्तान की कीर्ति काश्मीर के बाहर फैल गयी थी। भारत तथा सीमान्त स्थित अनेक राजा उसे उपहार भेजते थे । पंजाब के शासक ने ताजिक घोड़ा भेजा। मालवा तथा गौड़ के शासकों ने वस्त्र भेजा। सुल्तान ने भी सुन्दर भाषा मे काव्य लिखकर द्रव्य सहित बदले में उनके पास भेजा। राणा कुम्भ ने कुंजर नामक वस्त्र भेजा। ग्वालियर के राजा डुगर सिंह ने' 'संगीत शिरोमणि' 'संगीत चूड़ामणि' नामक ग्रन्थ भेजा। उसके पुत्र कीर्ति सिंह ने पिता का सम्बन्ध पूर्ववत् कायम रखा। सौराष्ट्र के शासक ने अश्व भेजा। बहलोल लोदी ने सुल्तान से मित्रता कर ली। खुरासान का सुल्तान अबूसैद ने घोड़ा और खच्चर भेजा। गुजरात के सुल्तान ने वस्त्र भेजा। गिलान, मिश्र, मक्का के सुल्तानों ने भी सुल्तान को भेंटें भेजी। बाहर से अनेक संगीत कलाकार, मदारी, सभी प्रदर्शन तथा द्रव्य प्राप्ति की आशा से काश्मीर प्रदेश आने लगे। उल्का पात आदि अपशकुनों के कारण किसी अशुभ कार्य की सूचना मिलने लगी। अकाल के कारण अन्न प्राप्ति के लिए एक देश, दूसरे देश तथा एक सुल्तान दूसरे सुल्तान पर आक्रमण करने लगे। खुरासान के सुल्तान अबूसैद ने इराक के सुल्तान पर अन्न हेतु आक्रमण किया। युद्ध हुआ। अबूसद बन्दी
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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