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जन-ग्रन्य-संग्रह।
गीतका छंद। सम्मेद गड़ है तीर्थ भारी, सबन के उज्जल करें। चिरकाल के जे कर्म लागे, दरस ते छिनमै रै।. है परम पावन पुन्य दाइक अतुल महिमा जानिये। है अनूप सरूप गिरि वर तासु पूजा डानिये ॥६॥
दोहा। श्री सम्मेद शिखर महा । पूजों मन वच काय। हरत चतुर्गति दुःख को, मन वांछित फलदाय ॥
ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अत्रावतरावतरसंवौषट् इत्याहाननम् परिपुष्पाञ्जलिं लिपेत्।
ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखर सिद्ध क्षेत्रन्यो अत्र तिष्ठ तिष्ठ :: स्थापनम् परि पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्ध क्षेत्रेभ्यो अब मम् सनिहितो भव भव वषट् सनिधीकरणं परि पुष्पंजलिं क्षिपेत् ।
प्रक। अडिल चन्द-झीरोदधि समनीर सु उज्जल लीजिये। कनक कलस मैं भरके धारा दीजिये । पूजो शिखिर सम्मेद सुमन वचकाय चू । नरकादिक दुःख टरें अचल पद पाय जू॥ ॐ ह्रीं श्री सम्मेदशिखिर सिद्धिोत्रेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाथ जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ पयसी घिस मलयागिर चन्दन ल्याइये । केसर आदि कपूर सुगंध मिलाइये। पूजो शिखिर० । ॐ ही श्री सम्मेदशिखिर सिद्धक्षेत्रेभ्यो संसारताप विनासनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ तंदुल धवल सु उज्जवल खासे धोय के। हम वरन के थार भरौं शुचि होय के ॥ पूजौं शिखिर 1ॐ ह्रीं श्री सम्मेहशिखिर सिद्धक्षेत्रेभ्यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निर्वामीति