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जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
मागे आचारजने संस्कृत + पूजा रची,
ताके शवद अरथ, कोई समझे ना बनायके ॥ . भाई पंडित लोग, भाषा पढ़ी पूजा रची,
ताकी है थिरता नाहि, वांचनकी गायके। तातें यह छोटी करो, और चित्त नाहिं धरी,
भैया इक घड़ी यांचो, आछो मन ल्यायके॥१८॥ शैलीके भाईजी गुलाबचन्द्र पण्डित जान ।
दुलीचन्द्र दयाचन्द्र, खूबचन्द्र जानिये। सिंगई भगोलेलाल, भाई, उमराव जान,
लीलाधर सुखानन्द, और भी प्रमानिये ॥ आय जिन मन्दिर में, शास्त्र सुनें प्रोति सेतो, घड़ी पहर बैठ, घर में वखानिये। धरम की चर्चा करें, करम की भी आन परे,
छोड़ के कुधर्म'चन्द्र'धरम हृदय आनिये ॥ ११ ॥ दोहा-पंचमकाल कराल में, पाप भयो अति जोर।
कडू धरम रुचि राखिये, 'चन्द्र' कहत कर जोर ॥२०॥ वसत जबलपुर नगर में, चलत सुनिज कुल रीति । राखत निशि वासर सदा, जैन धर्म से प्रीति ॥ २१॥ संवत एक सहस्र नव, शतक सुभसत्ताईस।। भादों कृष्ण त्रयोदशी, बुद्धिवार सु गणीश ॥ २२ ॥
इतिपंचपरमेष्ठी विधान ।
+श्रीयशोनंद्याचार्यकृत 'पंचपरमेष्ठिपजा' वि० सं. १९९७ ॥