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प्रकाशक का निवेदन। आज से कई वर्ष पहले मेरा विचार एक ऐसे ही गहन अन्थ का संग्रह प्रकाशित करने का था। उसके पश्चात् जब मुझे श्रीगोमटेश्वरजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब वहीं मैसूर जैन बोर्डिङ्ग में मेरा यह विचार और भी गुढ़ हो गया तब से मेरे सकल परिश्रम के फल स्वरूप जो कार्य हो सका वह आज आप की सेवा में उपस्थित है।
खेद है मेरी अस्वस्थना और कई अनिवार्य असुविधाओं के कारण, प्रकाशन के मार्ग में अनेक बाधायें आ पड़ी। मेरी बड़ी इच्छा थी कि यह ग्रन्थ वृहत सर्वोपयोगी और सबसे सस्ता प्रकाशित हो सके। किन्तु प्रेस की कठिनाइयों और महंगी के कारण मेरी वह इच्छा पूर्ण न हो सकी और मुझे इस ग्रन्थ को लागत मूल्य पर ही बेचने के लिये बाध्य होना पड़ा। यदि विज्ञ पाठकों और धर्मपरायण जैन-समाज ने इसे अपनाकर मेरे क्षीण उत्साह को वर्द्धित किया तो मैं ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण में अपनी इच्छा को पूरा करूंगा।
श्रीमान मास्टर छोटेलालजी प्रकाशक परवार-बन्धु श्रीमान सि० खेमचन्दजी बी. एस. सी. एल. टी. और श्रीमान भगवन्त गणपति-गोयलीय जी काहृदय से अत्यन्त आभारी हूं जिन्होंने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में विशेष सहायता की है। इसके अतिरिक्त उन सभी विद्वान कवियों और जैनाचार्यों का मैं परम कृतज्ञ हूँ जिनके सुालत, सरस और भक्तिभाव से परिपूर्ण पद्यों के सभाव से मेरा यह प्रयत्न राका रजनी के समान प्रकाशित रहेगा। .
जबलपुर,. . . रक्षा बंधन सं० १९८२ / नन्दकिशोर सांधेलीय ।
- १५२ पैज हितकारणी प्रेस जबलपुर में और शेष हिन्दी मंदिर प्रेस जबलपुर में मुनिता
विनीत,