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________________ ६० ] ® जैन-तत्त्व प्रकाश (५) रुद्र-जैसे देवी को भोपे (पंडे ) बकरा आदि के त्रिशूल से छेदते हैं और शूलों से बींधते हैं, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी जीवों को छेदते-भेदते हैं। (६) महारौद्रं-जैसे कसाई मांस के खण्ड-खण्ड करता है, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी जीवों के शरीर के खण्ड-खण्ड करते हैं। (७) काल-जैसे हलवाई गरम तेल वाली कढ़ाई में पूड़ी या भुजिया तलता है, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी का मांस काट-काट कर और तेल में तलकर उसी को खिलाते हैं। (८) महाकाल-जैसे पक्षी मुर्दा जानवर का मांस नौंच-नौंच कर खाते हैं, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी का मांस चीमटे से नौंच-नौंच कर उसे ही खिलाते हैं। (8) असिपत्र-जैसे योद्धा संग्राम में तलवार से शत्रु का संहार करता है उसी प्रकार यह परमाधामी तलवार से नारकियों के शरीर के तिल के बराबर-बराबर छोटे-छोटे खण्ड करते हैं। __ (१०) धनुष-जैसे शिकारी कान तक धनुष को खींच कर, बाण से पशु के शरीर को भेदता है, उसी प्रकार यह परमाधामी बाणों से नारकी जीवों के शरीर को भेदते हैं और उनके कान आदि अवयवों का छेदन करते हैं। (११) कुम्भ-जैसे गृहस्थ नींबू को चीर-फाड़ कर, उसमें नमक-मिर्च आदि मसाला भर कर घड़े में आचार डालता है, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी के शरीर को चीर-फाड़ कर, उसमें मसाला भर कर कुम्भी में पकाते हैं। (१२) वालुक-जैसे भड़पूँजा उष्ण रेती की कढ़ाई में चना आदि धान्य को भुंजते हैं, उसी प्रकार यह परमाधामी नारकी जीवों को गर्म बालू में भूजते हैं। (१३) वैतरणी-जैसे धोबी वस्त्र को धोता है, निचोड़ता है, पछाड़ता है, उसी प्रकार यह परमाधामी असुर वैतरणी नदी की सिखा पर नारकियों को पछाड़छाड़ कर घोले हैं तथा गरम मांस, रुथिर, राध आदि पदार्थों
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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