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________________ * सिद्ध भगवान् ® [ ५५ पाथड़े और छह अन्तर हैं । प्रत्येक पाथड़ा ३००० योजन का है और प्रत्येक अन्तर १३१६६ योजन का है । सब अन्तर खाली हैं । प्रत्येक पाथड़े के मध्य १००० योजन की पोलार में १०,००,००० नारकावास हैं । इनमें असंख्यात कुंभियाँ हैं, और असंख्यात नारकी जीव रहते हैं। इन जीवों का ६२॥ धनुष का देहमान होता है और आयु जघन्य सात सागरोपम एवं उत्कृष्ट दस सागरोपम की होती है । ___ इस चौथे नरक की सीमा पर, एक राजू ऊँचा और २२ रज्जु घनाकार विस्तार वाला तीसरा सीला (वालुका प्रभा) नामक नरक है । इसमें १२८००० योजन का पृथ्वीपिण्ड है । उसमें से ऊपर और नीचे एकएक हजार योजन छोड़कर, बीच में १,२६००० योजन की पोलार है। इसमें नौ पाथड़े और आठ अन्तर हैं। प्रत्येक पाथड़ा ३००० योजन का है और प्रत्येक अन्तर १२३७५ योजन का है । अन्तर सब खाली हैं और प्रत्येक पाथड़े के मध्य १००० योजन की पोलार में १५,००,००० नारकावास हैं। इनमें असंख्यात कुंमियाँ और असंख्यात नारकी जीव हैं। इन नारकी जीवों का देहमान ३१॥ धनुष का और आयुष्य जघन्य तीन और उत्कृष्ट सात सागरोपम का है। इस तीसरे नरक की सीमा के ऊपर एक रज्जु ऊँचा और सत्तरह रज्जु के घनाकार विस्तार में वंशा (शर्करप्रभा ) नामक दूसरा नरक है। इससे १३२००० योजन का पृथ्वीपिएड है। उसमें से नीचे और ऊपर एक-एक हजार योजन छोड़कर बीच में १,३०,००० योजन की पोलार है। इस पोलार में 'ग्यारह पाथड़े और दश अन्तर हैं । प्रत्येक पाथड़ा ३००० योजन का है और प्रत्येक अन्तर ६७०० योजन का है। अन्तर खाली हैं और प्रत्येक पाथड़े के मध्य में १००० योजन की पोलार में २५००००० नारकावास हैं। इनमें असंख्यात नारकी जीव हैं। इनका देहमान १५।। धनुष और १२ अंगुल का है और आयु जघन्य एक सागर तथा उत्कृष्ट तीन सागर की है। इस दूसरे नरक की सीमा के ऊपर , एक राजू ऊँचा और दस राजू घनाकार विस्तार में पहला धम्मा ( रत्नप्रभा ) नामक नरक है । इसमें कोयले
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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