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________________ * जैन-तत्त्व प्रकाश ५२ ] योजन + का चौड़ा, नीचे के दोनों कोनों में सात योजन चौड़ा, ऊपर के दोनों कोनों में पाँच योजन चौड़ा और ऊपर के मध्य भाग में दो कोस चौड़ा है। दूसरा धनवात (जमी हुई हवा) का वलय है । वह नीचे के मध्य भाग में २०००० योजन चौड़ा, नीचे के दोनों कोनों में पाँच योजन चौड़ा, ऊपर के मध्यभाग में चार योजन चौड़ा, ऊपर दोनों दीपक की सन्धिस्थान पर पाँच योजन चौड़ा, ऊपर के दोनों कोनों में चार योजन चौड़ा और ऊपर के मध्यभाग में एक कोस चौड़ा है । तीसरा तनुवात (पतली हवा) का वलय है। नीचे के मध्य में २०००० योजन चौड़ा, नीचे के दोनों कोनों में चार योजन चौड़ा, ऊपर के मध्यभाग में तीन योजन चौड़ा, ऊपर दोनों दीपकों के संधिस्थान पर चार योजन चौड़ा, ऊपर दोनों कोनों में तीन योजन चौड़ा और ऊपर के मध्य में १५७५ धनुष चौड़ा है । वहाँ सिद्ध भगवान् विराजमान हैं । + योजन का दो भाग की कल्पना भी न हो सके, उस निरंश पुद्गल को परमाणु कहते हैं । ऐसे अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के संयोग से एक बादर परमाणु होता है । अनन्त बादर परमाणुओं का एक उष्ण श्रेणिक (गरमी का ) पुद्गल, आठ उष्णश्रेणिक पुद्गलों का एक शीतश्रेणिक ( सर्दी का ) पुद्गल ; आठ शीतश्रेणिक पुद्गलों का एक ऊर्ध्वरेणु (तरवले में दिखाई देने वाला), आठ ऊर्ध्वरेणु का एक त्रसरेणु (त्रस जीव के चलने से उड़ने वाली धूलि का कण ), आठ त्रसरेणु का एक रथरेणु ( रथ चलने पर उड़ने वाली धूलि का कण ), आठ रथरेणु का एक देवकुरु या उत्तर कुरुक्षेत्र के मनुष्य का बालाय, देवकुरु तथा उत्तर कुरु के मनुष्य के आठ बालाय का एक हरिवास-रम्यकवास क्षेत्र के मनुष्य का बालाम, हरिवास-रम्यकवास के मनुष्य के आठ बालाम का एक हैमवत - ऐरण्यवत क्षेत्र के मनुष्य का बालाम, हेमवत - ऐरण्यवत क्षेत्र के मनुष्य के आठ बालाम का एक पूर्व-पश्चिम महाविदेह क्षेत्र के मनुष्य का बालाय, पूर्व-पश्चिम महाविदेह क्षेत्र के मनुष्य के आठ बालाय की एक लौख, आठ लीख का एक यूका, आठ यूका का एक यवमध्य, आठ यवमध्य का एक अंगुल, छह अंगुल का एक पाद (मुट्ठी), दो पाद की वितस्ति, दो वितस्ति का एक हाथ, दो हाथ की एक कुक्षि, दो कुक्षि का एक धनुष, २००० धनुष का एक गव्यूति ( कोस ), चार गव्यूति का एक योजन। इस योजन से अशाश्वत वस्तु का माप होता है । शाश्वत (नित्य) बस्तु का माप ४००० कोस के एक योजन से होता है। आगे सब जगह यही परिमाण समझना चाहिए ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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