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________________ ॐ सागारधर्म-श्रावकाचार [...? खड़ा होना पड़े । छठा-अन्य साधु का आहार अधिक हो और वह परठ-रहे हों तो उस आहार को भोग लेना । सातवें और आठवें आगार का अर्थ पूर्ववत् । ५-एकलठाणा का प्रत्याख्यान एकलठाणं पच्चक्खामि-असणं, पाणं,खाइमं साइम, अएणत्थणाभोगेणं सहसागारेणं (सागारी* आगारेणं), गुरुअन्भुट्ठाणेणं (परिट्ठावणियागारेणं), सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे । एकलठाणे के प्रत्याख्यान में सात आगार हैं, जिनका अर्थ पूर्ववत है । ६-निविगइय का प्रत्याख्यान निव्विगइयं पच्चक्खामि-असणं, पाणं, खाइम, साइमं, अएणत्थणाभोगेणं सहसागारेणं, लेवालेवेणं, (गिहत्यसंसद्वेणं), उक्खित्त विवगाणं, पडुच्चविगएणं, परिद्वावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे। इस नियम में प्रागार हैं। इनमें से आठ का अर्थ पहले आ चुका है । एक नया है, जिसका अर्थ है पूड़ी रोटी आदि के पुट में किसी विगय का लेप लगा हो और उसे ग्रहण कर ले । ७-आयंबिल का प्रत्याख्यान आयंबिलं पच्चक्खामि-रणं, पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणा * जो श्रागार कोष्ठक में दिये गये हैं, वे साधु के लिए ही हैं। x भूजा हुमा, रूखा, विना नमक का घान-पानी भिगोकर एक ही बार खाना, फिर दिन-रात में कुछ भी न खाना भायंबिल तप कहलाता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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