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________________ * अरिहन्त 8 [ ४५ अनादिकाल से चला आता है और आगे अनन्तकाल तक चलता रहेगा। अर्थात् कम से कम वीस तीर्थङ्कर तो अवश्य होंगे-इनसे कम कभी न होंगे और अधिक से अधिक १७० तीर्थङ्करों से अधिक कभी न होंगे। इस प्रकार अनन्त तीर्थङ्कर भूतकाल में हो गये हैं, बीस वर्तमानकाल में मौजूद हैं और अनन्त तीर्थङ्कर भविष्यकाल में होंगे। ___सब तीर्थङ्करों की जघन्य आयु ७२ वर्ष की होती है-इससे कम नहीं और उत्कृष्ट आयु ८४ लाख पूर्व की होती है, इससे अधिक नहीं । तीर्थङ्कर के शरीर की उँचाई जघन्य सात हाथ की+ और उत्कृष्ट ५०० धनुष की होती है—न इससे कम और न इससे ज्यादा । तीर्थङ्कर का शरीर, रज, मैल, स्वेद ( पसीना ), थूक, श्लेष्म (कफ) आदि से रहित, काकरेखा आदि दुष्ट लक्षणों से और तिल, मसा आदि दुष्ट व्यंजनों से रहित होता है । चन्द्र, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पर्वत, मगर, सागर, चक्र, शंख, स्वस्तिक आदि १००८ अति-उत्तम लक्षणों से अलंकृत, सूर्य के समान महान् तेजस्वी तथा निर्धम अग्नि के समान देदीप्यमान और अत्यन्त मनोहर होता है। तीर्थङ्कर भगवान् के शरीर की सुन्दरता का वर्णन करते हुए भक्तामरस्तोत्र में कहा गया है: वसन्ततिलकावृत्तम् स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानिसहस्ररश्मिं, प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥ अर्थ-ग्रह, नक्षत्र और ताराओं को जन्म देने वाली तो अनेक दिशाएँ हैं, किन्तु सूर्य को जन्म देने वाली केवल पूर्व दिशा ही है। इसी प्रकार इसा + शास्त्र में जीवों की जो अवगाहना (उचाई ) बतलाई है, वह इस पाँचवे श्रा के १०५०० वर्ष बीत जाने पर अर्थात् पाँचवाँ श्रारा आधा व्यतीत होने पर जो मनुष्य हो उनके हाथ से समझना चाहिए। उक्त तीर्थङ्करों की अवगाहना भी इसी प्रमाण से समझन चाहिए। यों तीर्थङ्कर अपने-अपने अंगुल से १०८ अंगुल के ऊँचे होते हैं और उनक मस्तक बारह अंगुल होता है । समस्त शरीर मिलकर १२० अंगुल की उँचाई होती है ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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