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________________ सागारधर्म - श्रावकाचार ( श्लोक ) श्रीसर्व पदजसेवन मतिः शाखागमे चिन्तना, तवातस्वविचारणे कुशलता सत्संयमे भावना | सम्यक्त्वे रुचिता वयाघटता जीवादिके रक्षणा, सत्सागारिगुणा जिनेन्द्रकथिता येषां प्रसादाच्छिवम् ॥ अर्थात् - श्री जिनेन्द्र भगवान् ने सागारधर्म अर्थात् श्रावकधर्म का पालन करने वाले के गुण इस प्रकार कहे हैं - सर्वज्ञ - केवलज्ञानी भगवान् के चरण कमलों के सेवन में ही जिसकी बुद्धि लगी रहती है, अर्थात् जो सर्वज्ञ की आज्ञा का पालन करने की भावना रखता है और भक्तिभाव से युक्त है, प्राप्त पुरुषों द्वारा प्रणीत श्रागम-शास्त्र के चिन्तन-मनन में जो संलग्न रहता है, जो तस्व-प्रत, धर्म-अधर्म, न्याय-अन्याय का विचार करने में कुशल है, जिनप्ररूपित संयम का पालन करने की अभिलाषा रखता है, सम्यक्त्व में रुचिमान् है, जो पापों को घटाने का निरन्तर प्रयास करता है, द्वीन्द्रिय आदि स जीवों का तथा पृथ्वीकाय आदि एकेन्द्रिय जीवों का यथाशक्ति रक्षण करता है, वही सागारी- श्रावक है । जिनेन्द्र भगवान् ने श्रावक के यह गुण कहे हैं। इनके प्रसाद से शिव-सुख की प्राप्ति होती है । और भी कहा है:न्यायोपाधनो यजन् गुणगुरून् सद्गीस्त्रिवर्गं भजेत्, अन्योन्यानुगुणं तदईगृहिणी स्थानालय हीमयः ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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