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________________ ६३६ ] *जैन-तत्व प्रकाश * नौवां बोल - यतना छह यता का अर्थ है सावधानी या सार सँभाल | प्रत्येक अच्छी वस्तु जब प्राप्त हो जाती है तो उसकी सार-संभाल करना भी आवश्यक होता है । सम्यक्त्व गुण का माहात्म्य अपार है । सौभाग्य से उसकी प्राप्ति होती है, tara प्राप्त होने पर हर प्रकार से उसकी रक्षा करने की सावधानी रखनी चाहिए । निम्नलिखित छह बातों से सम्यक्त्व की रक्षा होती है:I (१) आलाप - मिथ्यादृष्टि के साथ बिना प्रयोजन बातचीत न करे, अथवा उसके बोले बिना उससे बात न करे । हाँ, सम्यग्दृष्टि बोले या न बोले तो भी उसके साथ यथोचित वार्त्तालाप करे । (२) संलाप - मिथ्यादृष्टि छल-कपट से भरे होते हैं । वे सहज ही सम्यक्त्व में बट्टा लगा देते हैं । अतएव उनके साथ विशेष वार्तालाप न करे और सम्यग्दृष्टियों के साथ धर्मचर्चा आदि वार्तालाप बार-बार करे । (३) दान - दुखी, दरिद्री, अनाथ, अपंग आदि पर करुणा करके उन्हें दान देना तो सम्यक्त्वी का कर्त्तव्य है, किन्तु इन्हें दान देने से मोक्ष प्राप्त होगा, ऐसी इच्छा से मिथ्यात्वी को दान न दे । हाँ, अपने पास जो श्रेष्ठ, उपकारक और देने योग्य वस्तु हो, उसे देने के लिए सम्यक्त्वी को श्रामन्त्रित करे । सम्यग्दृष्टि को जिस वस्तु की चाहना हो सो दे । यथाशक्ति स्वधर्मियों की सहायता अवश्य करे । पाखण्डिनो विकर्मस्थान, वैडालव्रतिकान् शठान् । हैतुकान्ववृतश्च, वाड मात्रेणापि नाचेयेत् ॥ - मनुस्मृति, अ० ४, श्लो० ३.० अर्थात् - पाखण्डियों का, निषिद्ध कर्म करने वालों का, बिल्ली के समान दगाबाजों का. बगुले के समान दिखावटी चाचार पालने वाले धूतों का, शठों का, देव, गुरु, और शास्त्रों पर श्रद्धा न रखने वालों का और शास्त्रों के विरुद्ध तर्क करने वालों का वचन मात्र से भी सत्कार नहीं करना चाहिए।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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