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अरिहन्त
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में जो अनन्त चौत्रीसियाँ हो चुकी हैं, वे इसी अन्तर से हुई हैं । भविष्यकाल में जो अनन्त चौवीसियाँ होंगी, वे भी इसी अन्तर से होंगी | सब तीर्थङ्करों के देह की उँचाई और आयु इसी प्रकार की होगी । विशेषता यह है कि उत्सर्पिणीकाल के प्रथम तीर्थङ्कर से लेकर अन्तिम तीर्थङ्कर तक उपर्युक्त कथनानुसार होता है, जबकि अवसर्पिणीकाल में अन्तिम तीर्थङ्कर से लेकर पहले तीर्थङ्कर तक उलटा क्रम होता है ।