SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 639
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ® सम्यक्त्व [ ५६३ उसको भी अभी तक फल प्राप्त नहीं हुआ। तो मुझे क्या मिलने वाला है ? इस प्रकार विचार करना विचिकित्सा दोष है । ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि करणी कदापि निष्फल नहीं होती है। करणी चाहे अच्छी हो या बुरी, काल पकने पर उसका फल अवश्य ही प्राप्त होता है । प्रत्यक्ष देखा जाता है कि औषध लेने वाले प्रत्येक रोगी को तत्काल नीरोगता नहीं प्राप्त हो जाती; किन्तु नियत समय तक सेवन करने पर और पथ्य का पालन करने पर कालान्तर में ही वह गुण करती है। हे भव्य ! थोड़े काल से उत्पन्न हुए रोग का नाश करने में भी जब इतना समय लगता है तो अनादि काल के कर्म-रोग का समूल विनाश तत्काल कैसे हो सकता है ? किन्तु धर्मे करणी रूपी औषधि का सेवन करके, जो दोषत्याग रूप पथ्य का पालन करेगा, उसे कालान्तर में सुखसम्पदा रूप फल की प्राप्ति अवश्य होगी। श्राम का वृक्ष क्या तत्काल फल देने लगता है ? वर्षों तक उसे सींचना पड़ता है, उसकी रक्षा करनी पड़ती है, तब कहीं काल पूर्ण होने पर उसके फल मिलते हैं । महान् परिश्रम से खेत जोतकर उसमें बोया हुआ बीज भी कालान्तर में फल देता है। इसी प्रकार करनी का फल अबाधा काल समाप्त होने पर अवश्य प्राप्त होता है । किसी ने वैद्यराज से पूछा-किस पदार्थ के खाने से ताकत आती है ? वैद्यराज ने उत्तर दिया-दूध पीने से । प्रश्नकर्ता ने उसी वक्त भरपेट दूध पिया और मल्ल के साथ कुश्ती करने के लिए अखाड़े में कूद पड़ा । नतीजा वही हुआ, जो हो सकता था। वह जब हार गया तो क्रोधित होकर वैद्यराज को उलहना देने लगा-तुम झूठी दवा बताकर दूसरों का फजीता करवाते हो! : वैद्यराज ने हँसते हुए कहा-बाबा, मेरी दवाई सच्ची है; मगर समय पर-गुण करेगी।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy