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________________ ॐ अरिहन्त [ २७ शरीर का वर्ण सुवर्ण के समान पीला था । वृषभ का लक्षण* (चिह्न) था । शरीर की उँचाई ५०० धनुष की और आयु ८४ लाख पूर्व+ की थी। ८३ लाख पूर्व तक गृहस्थावस्था में रहे और एक लाख पूर्व तक संयम का पालन करके, तीसरे आरे के ३ वर्ष और ८॥ माह जब शेष रहे थे, तब दस हजार साधुओं के साथ मोक्ष को प्राप्त हुए। (२) श्री अजितनाथजी-आदिनाथजी से ५० लाख करोड़ सागर के बाद, अयोध्या नगरी के राजा जितशत्रु की रानी विजयादेवी से दूसरे तीर्थङ्कर अजितनाथजी हुए। इनके शरीर का वणे स्वणे सरीखा पीला था। हाथी का चिह्न था। देह की उँचाई ४५० धनुष की और आयु ७२ लाख पूर्व की थी। ७१ लाख पूर्व तक गृहस्थ-अवस्था में रहे । एक लाख पूर्व संयम पाला और एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष पधारे। (३) संभवनाथजी-अजितनाथजी से ३० लाख करोड़ सागरोपम के पश्चात् श्रावस्ती नगर में, जितारि राजा की सेनादेवी रानी से तीसरे तीर्थङ्कर सम्भवनाथजी का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण जैसा पीला और चिह्न अश्व का था। शरीर की उँचाई ४०० धनुष की और आयु ६० लाख पूर्व की थी । ५६ लाख पूर्व तक गृहस्थी में रहे । एक लाख पूर्व तक संयम पाला । एक हजार साधुओं के साथ मोक्ष पधारे। (४) श्री अभिनन्दनजी–तत्पश्चात् १० लाख करोड़ सागरोपम के बीत जाने पर विनीता नगरी में, संवर राजा की सिद्धार्था रानी से चौथे तीर्थङ्कर श्री अभिनन्दनजी का जन्म हुआ। इनके शरीर का वर्ण स्वर्ण के समान पीला और चिह्न कपि (बन्दर) का था। शरीर की ऊँचाई ३५० धनुष की और आयु ५० लाख पूर्व की थी। ४६ लाख पूर्व गृहवास में रहे। एक लाख पूर्व संयम का पालन करके एक हजार साधुओं के साथ मुक्ति को प्राप्त हुए। * लक्षण या चिह्न पैर में होते हैं किन्तु किसी-किसी के कथनानुसार वक्षस्थल में। + ७० लाख, ५६ हजार वर्ष को एक करोड़ से गुणा करने पर ७०५६०००००००००० वर्षों का एक पूर्व होता है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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