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________________ * मिथ्यात्व * [४६ अनित्य को नित्य, अशुद्ध को शुद्ध, दुःख को सुख और आत्मा को अनात्मा मानना ही अविद्या (मिथ्यात्व) है । मिथ्यात्व तीन प्रकार का है-(१) अणाइया अपञ्जवसिया (अनादि अनन्त) अर्थात् जिस मिथ्यात्व की आदि नहीं है और अन्त भी नहीं है । अभव्य जीवों को यह मिथ्यात्व होता है। अनन्त भव्यजीव भी ऐसे हैं जो अनन्तानन्त काल से आवकाहिक निगोद में पड़े हुए हैं। वे एकेन्द्रिय पर्याय को छोड़कर अब तक द्वीन्द्रिय पर्याय भी प्राप्त नहीं कर सके हैं और भविष्य में भी नहीं प्राप्त कर सकेंगे।* __(२) अण्णाइया सपजवसिया (अनादि सपर्यवसित) अर्थात् अनादि काल से मिथ्यात्वी होने के कारण जिन जीवों के मिथ्यात्व की आदि तो नहीं है, किन्तु सम्यक्त्व प्राप्त करने के योग्य होने के कारण जो मिथ्यात्व का अन्त कर डालते हैं। (३) साइया सपजवसिया (सादि सपर्यवसित) अर्थात् जो मिथ्यात्व एक बार नष्ट हो जाता है किन्तु फिर उत्पन्न हो जाता है और यथाकाल फिर नष्ट हो जायगा। मिथ्यात्व के स्वरूप को विस्तार से समझने के लिए उसके २५ भेदों को समझ लेना श्रावश्यक है। अतः यहाँ २५ भेद बतलाये जाते हैं: * संसार में तीन प्रकार के जीव हैं-(१) बन्ध्या स्त्री के समान, जो पुरुष का संसर्ग मिलने पर भी पुत्रवती नहीं होती। इसी प्रकार अभव्य जीव व्यावहारिक ज्ञान आदि की आराधना करके ग्रेवेयक तक जाते हैं और अनन्त संसार-परिभ्रमण करते रहते हैं। वे कभी मोक्ष प्राप्त नहीं करते। (२) दूसरे प्रकार के जीव विधवा स्त्री के समान होते हैं, जो पुत्र प्राप्त करने की योग्यता वाली तो है मगर पुरुष का संयोग न मिलने के कारण पुत्र उत्पन्न नहीं कर सकती। श्रावकाही निगोद में रहे हुए भव्य जीव उसमें से कभी निकलेंगे ही नहीं। ज्ञान आदि गुण प्राप्त नहीं कर सकेंगे और मोक्ष भी नहीं जा सकेंगे। इसी प्रकार निगोद में से निकले अनन्त भव्यजीव भी ऐसे हैं जो संसार में परिभ्रमण करते ही रहेंगे-कभी मोक्ष नहीं पायेंगे। (३) तीसरे प्रकार के जीव अवन्ध्या सधवा के समान हैं। जैसे अवन्ध्या सधवा स्त्री पुरुष के योग से पुत्र प्राप्त करती है, उसी प्रकार निकट भव्य जीव ज्ञानादि गुण प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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