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________________ ४६४ ] জনবল সন্ধায় ঃ अनुमान, आगम और उपमान प्रमाण को परोक्ष के एक ही भेद में अन्तर्गत किया जा सकता है। इस कारण परस्पर विरोध नहीं समझना चाहिए। १-प्रत्यक्ष प्रमाण वस्तु का जो स्पष्ट ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष प्रमाण कहलाता है। प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद हैं-(१) इन्द्रियप्रत्यक्ष और (२) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष । इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं-(१) द्रव्येन्द्रिय और (२) भावेन्द्रिय । द्रव्येन्द्रिय के भी दो भेद हैं—निवृत्ति और उपकरण । निर्वृत्ति भी दो प्रकार की हैआभ्यन्तर निवृत्ति और बाह्य निति । नेत्र आदि इन्द्रियों की आकृति रूप स्वस्थान में जो पुद्गल रहते हैं उन्हें आभ्यन्तर निवृत्ति कहते हैं। इन्द्रियों के आकार की पुद्गलों की बाह्य रचना को बाह्यनिवृति कहते हैं। निवृत्ति का जो उपकारक हो उसे उपकरण कहते हैं। वह भी दो प्रकार का है-(१) आभ्यन्तर उपकरण--जैसे नेत्र में काला और श्वेत मण्डल है और (२) बाह्य उपकरण-जैसे नेत्र के बाह्य उपकरण पलक आदि हैं। भावेन्द्रिय के दो भेद हैं-(१) लब्धि और (२) उपयोग । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से इन्द्रियों द्वारा जानने की शक्ति को लब्धि भावेन्द्रिय कहते हैं और लब्धि की सहायता से श्रात्मा की विषय को जानने में प्रवृत्ति होना उपयोग भावेन्द्रिय है। श्रोत्रेन्द्रिय सुनने का, चक्षइन्द्रिय रूम को देखने का, घ्राणेन्द्रिय गंध को जानने का, रसनेन्द्रिय स्वाद को जानने का और स्पर्शनेन्द्रिय शीत उष्ण आदि स्पर्शों को जानने का काम देती है। इन्द्रियों की विषयसीमा इस प्रकार है: (१) एकेन्द्रिय जीव की स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ४०० धनुष का है। (२) द्वीन्द्रिय जीव की दो इन्द्रियों में से पहली स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ८०० धनुष का है और रसेन्द्रिय का विषय ६४ धनुष का है।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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